23 नवंबर को इस विधि से करें भगवान श्रीगणेश की पूजा और व्रत, हर काम में मिल सकती है सफलता

प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भगवान श्रीगणेश के निमित्त व्रत किया जाता है। इस बार ये तिथि 23 नवंबर, मंगलवार को है। इसे एकदंत संकष्टी चतुर्थी, अंगारकी संकष्टी चतुर्थी (Angarak Chaturthi 2021), विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी आदि नामों से जाना जाता है।

उज्जैन. मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष में आने वाली संकष्टी चतुर्थी को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी (23 नवंबर, मंगलवार) के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो भी पूरे भक्ति भाव से गणपति की आराधना करता है, उसके जीवन के समस्त समस्याओं से मुक्ति मिलती है। ये तिथि बहुत ही विशेष है। इस तिथि पर भगवान श्रीगणेश की पूजा से हर काम में सफलता मिलती है और परेशानियां दूर होती हैं। आगे जानिए इस दिन किस विधि से करें भगवान श्रीगणेश की पूजा…

पूजा विधि
- सबसे पहले जो लोग गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत रख रहे हैं उन्हें ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करना अनिवार्य है। स्नान आदि के उपरांत स्वच्छ वस्त्र पहनने चाहिए। 
- उसके बाद पूजा स्थल में जाकर व्रत का सकंल्प लेना चाहिए। गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के व्रत के दिन चावल, गेहूं और दाल का सेवन न करें, यह भी एक अनिवार्य नियम है। 
- इस दिन व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। तामसिक भोजन जैसे मांस, मदिरा का सेवन भूलकर भी न करें। क्रोध पर काबू रखें और खुद पर संयम बनाए रखें। 
- गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश जी के मंत्रों के जाप के साथ श्री गणेश स्त्रोत का पाठ भी करें। गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत का पारण चंद्रोदय के पश्चात अर्घ्य देकर ही करें। 

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संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करें…
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।2।।
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ।।3।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।।
जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।
 

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