मार्गशीर्ष मास 20 नवंबर से, इस महीने में तीर्थ यात्रा का है महत्व, सतयुग में इसी महीने से शुरू होता था नया साल

हिंदू पंचांग का नौवां महीना मार्गशीर्ष 20 नवंबर, शनिवार से शुरू हो चुका है। वेदों में इस महीने को सह नाम दिया गया है। धार्मिक दृष्टिकोण से इस महीने का विशेष महत्व है। इस माह में पूर्वजों को याद करते हुए उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के साथ दान पुण्य करने का विधान है।
 

उज्जैन. आज (20 नवंबर, शनिवार) से हिंदू पंचांग का नौवां महीना मार्गशीर्ष शुरू हो रहा है। श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी के अनुसार, इसी मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। ये महीना भगवान श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय है। भगवान ने स्वयं कहा है कि मार्गशीर्ष मास स्वयं मेरा ही स्वरूप है। इसलिए इस मास में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा विशेष रूप से की जाती है।

इस महीने में तीर्थयात्रा का है विशेष महत्व
इस पवित्र माह में तीर्थाटन और नदी स्नान से पापों का नाश होने के साथ मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। मार्गशीर्ष मास में गीता जयंती भी मनायी जाती है। इसलिए इस माह में गीता का दान भी शुभ माना जाता है। गीता के एक श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण मार्गशीर्ष मास की महिमा बताते हुए कहते हैं -
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् ।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ।।

इसका अर्थ है गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम, छंदों में गायत्री तथा मास में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में में वसंत हूं। शास्त्रों में मार्गशीर्ष का महत्व बताते हुए कहा गया है कि वैदिक पंचांग के इस पवित्र मास में गंगा, युमना जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने से रोग, दोष और पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है।

सतयुग में इसी महीने से होता था वर्षारंभ
बाल गंगाधर तिलक के अनुसार ओरायन (मृगशीर्ष, मृगशिरा) नक्षत्र के साथ जु़ड़ी ग्रीक, पारसी व भारतीय कथाओं का अद्भुत साम्य, तीनों जातियों के एक ही मूलस्थान का प्रमाण है। ओरायन ग्रीक शब्द का मूल संस्कृत में है। मृग में वसंत बिंदु से वर्षारंभ होता है, अतः इसे अग्रहायन, अग्रायन यानी पथारंभ कहा है। 'ग' के लोप से यह अग्रायन, ओरायन बनता है। इसी तरह पारसी शब्द, पौरयानी है जो 'प' लोप करके, ओरायन बनता है। अग्रहायन, अग्रायन का अपभ्रंश 'अगहन' है जो मार्गशीर्ष मास में किसी समय, वर्षारंभ का प्रतीक है, पुराणों के अनुसार सत्ययुग में इसी माह से नया वर्ष प्रारंभ होता था। 

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