तुला संक्रांति आज: ओडिशा और कर्नाटक में इस दिन मनाया जाता है उत्सव, कावेरी नदी पर लगता है मेला

सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में जाने को संक्रांति कहते हैं। इस बार 17 अक्टूबर, रविवार को सूर्य कन्या राशि से निकलकर तुला राशि में प्रवेश करेगा। सूर्य के तुला राशि में जाने से ये तुला संक्रांति कहलाएगी। इस राशि में सूर्य 16 नवंबर तक रहेगा।
 

उज्जैन. धार्मिक दृष्टिकोण से सूर्य के राशि परिवर्तन का विशेष महत्व है। इस परिवर्तन को पर्व की संज्ञा दी गई है। इस दिन सूर्य देवता को अर्ध्य देकर विशेष पूजा आदि की जाती है। आगे जानिए इस दिन का महत्व…
 

क्या है तुला संक्रांति?
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के अनुसार, सूर्य का तुला राशि में आना तुला संक्रांति कहलाता है। ये त्योहार हिंदू कैलेंडर के अश्विन या कार्तिक महीने में पड़ता है। कुछ राज्यों में इसका अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। इनमें मुख्य ओडिशा और कर्नाटक है। यहां के किसान इस दिन को अपनी चावल की फसल के दाने के आने की खुशी के रूप में मनाते हैं। इन राज्यों में इस पर्व को बहुत अच्छे ढंग से मनाया जाता है। तुला संक्रांति का कर्नाटक और ओडिशा में खास महत्व है। इसे तुला संक्रमण भी कहा जाता है। इस दिन कावेरी के तट पर मेला लगता है, जहां स्नान और दान-पुण्य किया जाता है।

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चढ़ाए जाते हैं ताजे धान
1.
तुला संक्रांति पर और सूर्य के तुला राशि में रहने वाले पूरे 1 महीने तक पवित्र नदियों और तालाबों में नहाना बहुत शुभ माना जाता है।
2. तुला संक्रांति का वक्त जो होता है उस दौरान धान के पौधों में दाने आना शुरू हो जाते हैं। इसी खुशी में मां लक्ष्मी का आभार जताने के लिए ताजे धान चढ़ाए जाते हैं।
3. कई इलाकों में गेहूं की बालियां चढ़ाई जाती हैं। मां लक्ष्मी से प्रार्थना की जाती है कि वो उनकी फसल को सूखा, बाढ़, कीट और बीमारियों से बचाकर रखें और हर साल उन्हें लहलहाती हुई ज्यादा फसल दें।
4. इस दिन देवी लक्ष्मी की विशेष पूजन का भी विधान है। माना जाता है इस दिन परिवार सहित देवी लक्ष्मी का पूजन करने और उन्हें चावल चढ़ाने से भविष्य में कभी भी अन्न की कमी नहीं आती।


पूरे साल में होती है 12 संक्रांति
सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति कहते हैं। संक्रांति एक सौर घटना है। हिन्दू कैलेंडर और ज्योतिष के मुताबिक पूरे साल में 12 संक्रान्तियां होती हैं। हर राशि में सूर्य के प्रवेश करने पर उस राशि का संक्रांति पर्व मनाया जाता है। हर संक्रांति का अलग महत्व होता है। शास्त्रों में संक्रांति की तिथि एवं समय को बहुत महत्व दिया गया है। संक्रांति पर पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि का काफी महत्व है।

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