हमारे देश में समय-समय पर कई धार्मिक मेलों व यात्राओं का आयोजन किया जाता है। ऐसी ही एक प्रसिद्ध यात्रा महाराष्ट्र के पंढरपुर में निकाली जाती है। यहां भगवान श्रीकृष्ण का प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण विट्ठल रूप में विराजमान हैं। साल में 2 बार इस मंदिर में मेला लगता है और यात्रा निकाली जाती है।
उज्जैन. इस बार देवउठनी एकादशी 15 नवंबर, सोमवार को होने से इस दिन भगवान विट्ठल की यात्रा निकाली जाएगी। इस मौके पर लाखों लोग भगवान विट्ठल और देवी रुक्मणि की महापूजा देखने के लिए एकत्रित होते हैं। ऐसी मान्यता है कि ये यात्राएं पिछले 800 सालों से लगातार आयोजित की जा रही हैं। वारकरी संप्रदाय के लोग यहां यात्रा करने के लिए आते हैं। यात्रा को ही 'वारी देना' कहते हैं।
यहां भक्त को दर्शन देने के लिए स्वयं प्रकट हुए थे श्रीकृष्ण
- मान्यता के अनुसार, 6वीं सदी में एक प्रसिद्ध संत पुंडलिक हुए जो माता-पिता के परम भक्त थे। उनके इष्टदेव श्रीकृष्ण थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान श्रीकृष्ण देवी रुकमणी के साथ प्रकट हुए। तब प्रभु ने उन्हें स्नेह से पुकार कर कहा- पुंडलिक, हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने आए हैं।
- महात्मा पुंडलिक ने जब उस तरफ देखा और कहा कि- मेरे पिताजी शयन कर रहे हैं, इसलिए आप इस कुछ देर प्रतीक्षा कीजिए और वे पुन: अपने पिता के पैर दबाने में लीन हो गए। भगवान ने अपने भक्त की आज्ञा का पालन किया और कमर पर दोनों हाथ रखकर खड़े हो गए।
- भगवान श्रीकृष्ण का यही स्वरूप विट्ठल कहलाया। यही स्थान पुंडलिकपुर या अपभ्रंश रूप में पंढरपुर कहलाया, जो महाराष्ट्र का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ है। संत पुंडलिक को वारकरी संप्रदाय का ऐतिहासिक संस्थापक भी माना जाता है, जो भगवान विट्ठल की पूजा करते हैं। यहां भक्तराज पुंडलिक का स्मारक बना हुआ है। इसी घटना की याद में यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है।
मंदिर का इतिहास
1. महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। यहां श्रीकृष्ण को विठोबा कहते हैं। इसीलिए इसे विठोबा मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर के किनारे भीमा नदी बहती है। माना जाता है कि यहां स्थित पवित्र नदी में स्नान करने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं को धोने की शक्ति होती है।
2. मंदिर में प्रवेश करते समय द्वार के समीप भक्त चोखामेला की समाधि है। प्रथम सीढ़ी पर ही नामदेवजी की समाधि है। द्वार के एक ओर अखा भक्ति की मूर्ति है। निज मंदिर के घेरे में ही रुक्मणिजी, बलरामजी, सत्यभामा, जांबवती तथा श्रीराधा के मंदिर हैं।
3. कहते हैं कि विजयनगर साम्राज्य के प्रसिद्ध नरेश कृष्णदेव विठोबा की मूर्ति को अपने राज्य में ले गए थे किंतु बाद में एक बार फिर इसे एक महाराष्ट्रीय भक्त वापस इसे ले आया और इसे पुन: यहां स्थापित कर दिया।
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