सार

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi 2021) कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु नींद से जागते हैं और सृष्टि का संचालन करते हैं। इस बार ये एकादशी 15 नवंबर, सोमवार को है।

उज्जैन. जिस तरह हर हिंदू पर्व से जुड़ी कोई न कोई परंपरा होती है, उसी तरह देवउठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi 2021) से जुड़ी एक परंपरा भी बहुत प्रसिद्ध है। इस परंपरा के अंतर्गत तुलसी के पौधे का विवाह शालिग्राम शिला से करवाया जाता है। मंदिरों में इस दिन ये परंपरा विशेष रूप से निभाई जाती है। इस मौके पर बड़े आयोजन किए जाते हैं और जरुरतमंदों को दान भी किया जाता है। शालिग्राम शिला को भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है। इस परंपरा से जुड़ी एक कथा है जो बहुत प्रसिद्ध है। आज हम आपको उसी कथा के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…

इसलिए करवाया जाता है तुलसी-शालिग्राम विवाह

- शिवमहापुराण के अनुसार, पुरातन समय में शंखचूड़ नाम का एक असुर था। उसकी पत्नी तुलसी थी जिसका सतीत्व अखंड था। शंखचूड ने ब्रह्माजी से वरदान पाकर तीनों लोकों पर विजय प्राप्त की। स्वर्ग के हाथ से निकल जाने पर देवता भगवान शिव के पास आए।
- देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव ने अपने एक गण को शंखचूड़ के पास भेजा और देवताओं का राज्य देने के लिए कहा। लेकिन शंखचूड़ ने ऐसा नहीं किया। क्रोधित होकर महादेव उससे युद्ध करने निकल पड़े। देखते ही देखते देवता व दानवों में घमासान युद्ध होने लगा। वरदान के कारण शंखचूड़ को देवता हरा नहीं पा रहे थे।
- तब भगवान विष्णु शंखचूड़ का रूप बनाकर तुलसी के पास पहुंचें। तुलसी ने भगवान विष्णु को अपना पति समझकर उनका पूजन किया व रमण किया। तुलसी का सतीत्व भंग होते ही भगवान शिव ने युद्ध में अपने त्रिशूल से शंखचूड़ का वध कर दिया।
- तुलसी को जब यह पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। तब भगवान विष्णु ने कहा- तुम्हारे श्राप को सत्य करने के लिए मैं पाषाण (शालिग्राम) बनकर रहूंगा। गंडकी नदी के तट पर मेरा वास होगा। धर्मालुजन तुलसी के पौधे व शालिग्राम शिला का विवाह कर पुण्य अर्जन करेंगे। तभी से ये परंपरा चली आ रही है।

सजेगा गन्नों का मंडप... ऋतु फलों का लगेगा भोग
देवउठनी एकादशी पर घरों और मंदिरों में गन्नों से मंडप सजाकर उसके नीचे भगवान विष्णु की प्रतिमा विराजमान कर मंत्रों से भगवान विष्णु को जगाएंगे और पूजा-अर्चना करेंगे। पूजा में भाजी सहित सिंघाड़ा, आंवला, बेर, मूली, सीताफल, अमरुद और अन्य ऋतु फल चढाएं जाएंगे। पं. मिश्रा के मुताबिक जल्दी शादी और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना से ये पूजा अविवाहित युवक-युवतियां भी खासतौर से करते हैं।

कन्यादान का पुण्य
जिन घरों में कन्या नहीं है और वो कन्यादान का पुण्य पाना चाहते हैं तो वह तुलसी विवाह कर के प्राप्त कर सकते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण का कहना है कि सुबह तुलसी का दर्शन करने से अक्षय पुण्य फल मिलता है। साथ ही इस दिन सूर्यास्त से पहले तुलसी का पौधा दान करने से भी महा पुण्य मिलता है।

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