Ganesh Chaturthi 2022: कभी 1 ही दिन मनाते थे गणेश उत्सव, अब 10 दिन क्यों मनाया जाता है?

Ganesh Chaturthi 2022: हिंदू धर्म में भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने के कई व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं। इन सभी में गणेश चतुर्थी का पर्व सबसे खास है। ये पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। 
 

उज्जैन. इस बार 31 अगस्त, बुधवार को गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2022) पर्व है। इस दिन घर-घर में गणपति प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी और 10 दिवसीय गणेश उत्सव आरंभ होगा। शिवपुराण के अनुसार, इसी तिथि पर भगवान श्रीगणेश का जन्म हुआ था, इसलिए ये पर्व मनाया जाता है। ये एक ऐसा उत्सव है जो सार्वजनिक रूप से भी मनाया जाता है। इस दिन चौराहों पर भगवान श्रीगणेश की विशाल प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और 10 दिनों तक रोज सांस्कृतिक व धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। लेकिन पहले ये उत्सव सिर्फ 1 ही दिन मनाया जाता है। बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि अब इस पर्व को 10 दिनों तक क्यों मनाया जाता है। आज हम आपको इसी के बारे में बता रहे हैं।

पेशवा शासक मनाते थे भव्य गणेशोत्सव
गणेश चतुर्थी का पर्व तो हजारों सालों से मनाया जा रहा है, लेकिन इसे भव्य रूप दिया पेशवाओं ने। उस समय पूना और इसके आस-पास के क्षेत्रों पर पेशवाओं का अधिकार था। उन्होंने ही गणेश चतुर्थी का पर्व भव्य रूप से मनाना शुरू किया, लेकिन ये पर्व भी सिर्फ 1 ही दिन मनाया जाता था। जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने पेशवाओं के राज्य पर अधिकार कर लिया। इस वजह से गणेश उत्सव की भव्यता में कमी आने लगी। 

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तिलक ने की था सामूहिक गणेशोत्सव की शुरूआत
जिस समय अंग्रेजों का प्रभाव बढ़ रहा था, उस समय हिंदू भी अपने धर्म के प्रति उदासीन होते जा रहे थे। ऐसे समय में महान क्रांतिकारी व जननेता लोकमान्य तिलक ने सोचा कि हिंदू धर्म को कैसे संगठित किया जाए? तब उनके मन में सामूहिक गणेश उत्सव मनाने का विचार आया। उन्होंने सोचा कि गणेशोत्सव एक धार्मिक उत्सव होने के कारण अंग्रेज शासक भी इसमें दखल नहीं दे सकेंगे। इसी विचार के साथ लोकमान्य तिलक ने पूना में सन् 1893 में सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरूआत की। 

इसलिए 10 दिन तक मनाया जाता है गणेश उत्सव
जब लोकमान्यत तिलक ने पूना में सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरूआत की तो उन्हें देखकर धीरे-धीरे पूरे महाराष्ट्र में सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाया जाने लगा। धीरे-धीरे ये परंपरा पूरे देश में फैल गई। उस समय अन्य धर्म भी हिंदू धर्म पर हावी हो रहे थे। इस संबंध में लोकमान्य तिलक ने पूना में एक सभा आयोजित की और ये तय किया कि गणेश उत्सव सिर्फ 1 दिन न मनाकर 10 दिन मनाया जाए। सभी लोगों ने इसका समर्थन किया। इस तरह गणेश उत्सव 10 दिन मनाने की परंपरा शुरू हुई।


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