Ganga Dussehra 2022: गंगा जल को क्यों मानते हैं इतना पवित्र, क्यों लंबे समय तक खराब नहीं होता ये पानी?

धर्म ग्रंथों के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरे (Ganga Dussehra 2022) का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व दो दिनों तक मनाया जाएगा, ऐसा पंचांग भेद होने के कारण होगा।

उज्जैन. शैव मत के अनुसार गंगा दशहरा का पर्व 9 जून, गुरुवार को तो वैष्णव मत के अनुसार 10 जून, शुक्रवार को मनाया जाएगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी तिथि पर देवनदी गंगा धरती पर आई थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थी, इसलिए गंगा जल को बहुत पवित्र माना गया है। ऐसा भी कहा जाता है कि मृत्यु शैया पर पड़े व्यक्ति के मुंह में यदि गंगा जल डाल दिया जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगा जल को सिर्फ धार्मिक कारणों से ही इतना महत्वपूर्ण नहीं माना गया है बल्कि इससे वैज्ञानिक तथ्य भी जुड़े हैं। आगे जानिए गंगा जल से जुड़ी खास बातें…

गंगा जल में है बैक्टीरिया मारने की अद्भुत क्षमता
- गंगा जल पर अब तक कई वैज्ञानिक रिसर्च किए गए, उन सभी में एक बात सामने आई कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को मारने का अद्भुत गुण है। गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफैज वायरस होते हैं। ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और उन्हें नष्ट कर देते हैं। यही कारण है कि गंगा का पानी लंबे समय तक खराब नहीं होता।
- लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट एनबीआरआई के निदेशक डॉक्टर चंद्र शेखर नौटियाल के अनुसार,  गंगा जल में बीमारी पैदा करने वाले ई कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है, जो अन्य किसी नदी के पानी में नहीं पाई जाती। साथ ही जब गंगा का पानी हिमालय से आता है तो इसमें कई तरह खनिज तत्व प्राकृतिक रूप से होते हैं। 
- वैज्ञानिकों ने अपने शोध में ये भी पाया है कि गंगा जल वातावरण से ऑक्सीजन सोख लेता है, जिससे ये हमेशा ताजा बना रहता है। इसमें प्रचूर मात्रा में गंधक भी पाया जाता है, जिसके कारण इसमें कीड़े नहीं पैदा होते। इसी वजह से गंगा का पानी लंबे समय तक खराब नहीं होता और इसके औषधीय गुण बने रहते हैं। यही कारण है कि गंगा जल को हिंदू धर्म में इतना पवित्र माना गया है।

स्वर्ग से धरती पर कैसे आई गंगा? (story of river ganga)
- वाल्मीकि रामायण के अनुसार, इक्ष्वाकु वंशी राजा सगर के 60 हजार पुत्र थे। एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया और अपने 60 हजार पुत्रों को उस यज्ञ के घोड़े की रक्षा में लगाया। तब देवराज इंद्र ने वो घोड़ा छल से चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। 
- जब राजा सगर के पुत्र घोड़े को ढूंढते हुए कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचें तो घोड़े को वहां देखकर वे कपिल मुनि को भला-बुरा करने लगे। कपिल मुनि उस समय तपस्या कर रहे थे। सगर पुत्रों की बात सुनकर उन्होंने क्रोध में अपनी आंखें खोली तो राजा सगर के 60 हजार पुत्र वहीं भस्म हो गए। 
- राजा सगर को जब ये बात पता चली तो उन्हें बहुत दुख हुआ और उन्होंने कपिल मुनि से क्षमा मांगी और अपने पुत्रों के उद्धार का उपाय पूछा। तब कपिल मुनि ने बताया कि देवनदी गंगा के स्पर्श से ही इन सगर पुत्रों को मुक्ति मिलेगी। 
- राजा सगर के वंशज भगीरथ ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए कठोर तपस्या की और गंगा को धरती पर लाए। गंगा के स्पर्श से ही राजा सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार हुआ। यही कारण है देवनदी गंगा को मोक्षदायिनी भी कहा जाता है।

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फोटो सोर्स: @shiv_saxena/Unsplash

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