उज्जैन. सिखों के नौवें गुरु तेगबहादुर थे। गुरु तेगबहादुर ने धर्म व मानवता की रक्षा करते हुए हंसते-हंसते अपने प्राणों की कुर्बानी दी थी। जानिए कैसे गुरु तेगबहादुर ने निर्भय होकर अपना शीश कटा दिया था-
मुगल बादशाह औरंगजेब के दरबार में एक विद्वान पंडित रोज गीता के श्लोक पढ़ता और उसका अर्थ सुनाता था, पर वह पंडित गीता में से कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था।
एक दिन वह पंडित बीमार हो गया और उसने औरंगजेब को गीता सुनाने के लिए अपने बेटे को भेज दिया, लेकिन वह उसे ये बताना भूल गया कि उसे किन-किन श्लोकों को अर्थ राजा को नहीं बताना है।
पंडित के बेटे ने जाकर औरंगजेब को पूरी गीता का अर्थ सुना दिया। गीता का अर्थ सुनकर औरंगजेब को यह ज्ञान हो गया कि प्रत्येक धर्म अपने आप में महान है।
औरंगजेब को अपने धर्म के अलावा किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा सहन नहीं थी। औरंगजेब ने सबको इस्लाम धर्म अपनाने के लिए कहा। इस कारण अन्य धर्म के लोगों का जीवन कठिन हो गया।
यह बात जब गुरु तेगबहादुर को पता चली तो उन्होंने कहा कि औरंगजेब से कह दो कि यदि मैंने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो इसके बाद सभी लोग इस्लाम धर्म अपना लेंगे।
औरंगजेब ने जब ये बात सुनी तो गुरु तेगबहादुर को अपने दरबार में बुलाया और उन्हें बहुत लालच दिया पर वे नहीं माने। तब औरंगजेब ने उन पर तरह-तरह के जुल्म किए।
गुरुजी ने औरंगजेब से कहा कि- इस्लाम में किसी को जबरदस्ती मुसलमान बनाने के लिए नहीं कहा गया है इसलिए तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो। औरंगजेब यह सुनकर आगबबूला हो गया।
औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेगबहादुर का सिर कटवा दिया। उन्हीं की याद में उनके शहीदी स्थल पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा शीशगंज साहिब है।