हनुमान जयंती: भगवान शिव और हनुमान में भी हुआ था युद्ध, इस पुराण में मिलती है ये अनोखी कथा
हनुमानजी भगवान शिव के अवतार हैं, ये बात तो हम सभी जानते हैं, लेकिन हनुमानजी और भगवान शिव का युद्ध भी हुआ था, ये बात बहुत कम लोग जानते हैं। इससे संबंधित कथा का वर्णन पद्म पुराण के पातालखंड में मिलता है।
उज्जैन. हनुमानजी भगवान शिव के अवतार हैं, ये बात तो हम सभी जानते हैं, लेकिन हनुमानजी और भगवान शिव का युद्ध भी हुआ था, ये बात बहुत कम लोग जानते हैं। इससे संबंधित कथा का वर्णन पद्म पुराण के पातालखंड में मिलता है। हनुमान जयंती (8 अप्रैल, बुधवार) के मौके पर हम आपको इस कथा के बारे में बता रहे हैं।
ये है पूरा प्रसंग
Latest Videos
जब भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ किया तो यज्ञ का घोड़ा घूमते-घूमते देवपुर नाम के नगर में जा पहुंचा। उस नगर के राजा का नाम वीरमणि था। वीरमणि भगवान शिव का परम भक्त था इसलिए देवपुर की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते थे।
वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने जब यज्ञ का घोड़ा देखा उसे बंदी बना लिया। यह बात जब घोड़े की रक्षा कर रहे शत्रुघ्न को पता चली तो उन्होंने देवपुर पर आक्रमण करने का निश्चय किया। शत्रुघ्न और राजा वीरमणि की सेना में भयंकर युद्ध छिड़ गया।
हनुमानजी भी वीरमणि की सेना का संहार करने लगे। श्रीराम के भाई भरत के पुत्र पुष्कल ने जब राजा वीरमणि को घायल कर दिया तो उनकी सेना अपनी जान बचाकर भागने लगी। जब भगवान शिव ने अपने भक्त का यह हाल देखा तो वे भी उनके पक्ष में युद्ध करने लगे।
भगवान शिव को युद्ध करते देख शत्रुघ्न भी वहां आ गए। दोनों में भयंकर युद्ध होने लगा। भगवान शिव ने वीरभद्र को पुष्कल से नंदी को हनुमाजनी से युद्ध करने के लिए भेजा। वीरभद्र और पुष्कल का युद्ध पांच दिन तक चलता रहा।
अंत में वीरभद्र ने पुष्कल का वध कर दिया। ये देखकर शत्रुघ्न को बहुत दुख हुआ। शत्रुघ्न और क्रोधित होकर शिव से युद्ध करने लगे। उनका युद्ध 11 दिनों तक चलता रहा। अंत में भगवान शिव के प्रहार से शत्रुघ्न बेहोश हो गए। यह देख हनुमानजी स्वयं शिव से युद्ध करने लगे।
हनुमानजी ने शिवजी से पूछा कि- आप तो राम भक्त हैं तो फिर हमसे युद्ध क्यों कर रहे हैं। शिवजी ने कहा कि- मैंने राजा वीरमणि को उसके राज्य की रक्षा करने का वचन दिया है इसलिए मैं युद्ध करने के लिए बाध्य हूं। इसके बाद हनुमानजी और शिवजी के बीच भयंकर युद्ध होने लगा।
हनुमानजी के पराक्रम से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनसे वरदान मांगने को कहा। तब हनुमानजी ने कहा कि- इस युद्ध में भरत के पुत्र पुष्कल मारे गए हैं और शत्रुघ्न भी बेहोश हैं। मैं द्रोणगिरी पर्वत पर संजीवनी औषधि लेने जा रहा हूं, तब तक आप इनके शरीर की रक्षा कीजिए। शिवजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।
इधर हनुमानजी तुरंत द्रोणगिरी पर्वत आए और संजीवनी औषधि लेकर पुन: युद्ध भूमि में आ गए। उस औषधि से हनुमानजी ने पुष्कल को पुन:जीवित कर दिया और शत्रुघ्न को भी स्वस्थ कर दिया। शत्रुघ्न और शिवजी में फिर से युद्ध होने लगा।
जब शत्रुघ्न किसी भी तरह से शिवजी से नहीं जीत पाए तो हनुमानजी ने उनसे श्रीराम को याद करने के लिए कहा। शत्रुघ्न ने ऐसा ही किया। श्रीराम तुरंत युद्ध भूमि में प्रकट हो गए।
श्रीराम को आया देख भगवान शिव भी उनकी शरण में चले गए और वीरमणि आदि योद्धाओं से भी ऐसा ही करने को कहा। वीरमणि ने यज्ञ को घोड़ा भी श्रीराम को लौटा दिया और अपना राज्य भी उन्हीं को सौंप दिया। इस तरह वह युद्ध समाप्त हुआ।