हिंदू धर्म में विवाह को 7 जन्मों का बंधन माना जाता है। ये सिर्फ दो लोगों का नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन होता है। जहां दोनों पक्ष एक दूसरे के सुख और दुख के भागी बनते हैं। विवाह के दौरान की परंपराएं निभाई जाती है, इन्हीं में से एक है तोरण मारना।
उज्जैन. हिंदू धर्म में विवाह के दौरान अनेक परंपराएं निभाई जाती हैं। ऐसी ही एक परंपरा है तोरण मारना। ये परंपरा तब निभाई जाती है जब दूल्हा घोड़े पर बैठकर दुल्हन पक्ष के दरवाजे पर पहुंचता है। तब दरवाजे के ऊपर एक लकड़ी का तोरण बांधा जाता है, जिसे दूल्हे द्वारा कटार या तलवार से छुआ जाता है। इसे ही तोरण मारना कहते हैं। इसके बाद ही आगे ही रस्म पूरी की जाती है। हालांकि इस परंपरा के पीछे कोई भी वैज्ञानिक तथ्य नहीं है, लेकिन मनोवैज्ञानिक पक्ष अवश्य है। आज हम आपको इसी के बारे में बता रहे हैं…
ये है तोरण मारने से जुड़ा मनोवैज्ञानिक पक्ष
- एक प्राचीन कथा के अनुसार तोरण नामक एक राक्षस था, जो शादी के समय दुल्हन के घर के द्वार पर तोते का रूप धारण कर बैठ जाता था। जब दूल्हा द्वार पर आता तो वह उसके शरीर में प्रवेश कर दुल्हन से स्वयं शादी रचाकर उसे परेशान करता था।
- एक बार एक साहसी और चतुर राजकुमार शादी के वक़्त जब दुल्हन के घर में प्रवेश कर रहा था, तब उसकी नज़र उस राक्षसी तोते पर पड़ी और उसने तलवार के वार से तुरंत ही उसे मार गिराया और फिर शांति से शादी सम्पन्न हुई। कहते हैं कि उसी दिन से ही तोरण मारने की परम्परा शुरू हुई।
- इसमें दुल्हन के घर के दरवाज़े पर लकड़ी का तोरण लगाया जाता है, जिस पर एक तोता (राक्षस का प्रतीक) होता है। उसके बग़ल में दोनों तरफ़ छोटे तोते होते हैं। दूल्हा शादी के समय तलवार से उस लकड़ी के बने राक्षस रूपी तोते को मारने की रस्म पूर्ण करता है।
- आजकल बाज़ार में बने सुंदर तोरण मिलते हैं, जिन पर धार्मिक चिह्न अंकित होते हैं और दूल्हा उन पर तलवार से वार कर तोरण (राक्षस) मारने की रस्म पूर्ण करता है, जो कि गलत है। परम्परा अनुसार तोरण पर तोते का स्वरूप ही होना चाहिए। अन्य कोई धार्मिक चिह्न तोरण पर नहीं होना चाहिए। धार्मिक चिह्नों पर तलवार के वार करना सर्वथा अनुचित है। इस बात का सभी को विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।
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