हर धर्म में विवाह से जुड़ी अलग-अलग परंपराएं और मान्यताएं होती हैं। इन सभी से जुड़ी कोई न कोई वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक या धार्मिक पक्ष जरूर जुड़ा होता है। हिंदू धर्म में विवाह के दौरान दूल्हे को एक छोटी से कटार अपने पास रखने को दी जाती है। कुछ स्थानों पर कटार के स्थान पर तलवार दी जाती है।
उज्जैन. विवाह संपन्न होने तक ये कटार या तलवार दूल्हा अपने पास रखता है। हिंदू ही नहीं सिख धर्म में भी ये परंपरा निभाई जाती है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के अनुसार, ये परंपरा क्यों निभाई जाती है, इस संबंध में धर्म ग्रंथों में कोई तथ्य नहीं मिलता और न ही इसका कोई धार्मिक कारण होता है। इस परंपरा के पीछे मनोवैज्ञानिक तथ्य जरूर छिपे हैं, आज हम आपको उन्हीं तथ्यों के बारे में बता रहे हैं जो इस प्रकार है…
नकारात्मक शक्तियों से बचाती है कटार
विवाह के दौरान दूल्हे को हल्दी लगाई जाती है। माना जाता है हल्दी की वजह से कई नकारात्मक शक्तियां (ऊपरी हवा) दूल्हे की ओर आकर्षित होती हैं। इससे दुल्हन को नुकसान पहुंचने का आशंका बना रहती है। कटार या तलवार उस नकारात्मक शक्ति से दूल्हे को बचाने का कार्य करती है। इसलिए दूल्हा अपने पास कटार या तलवार जरूर रखता है।
राजा का स्वरूप होता है दूल्हा
पुरानी मान्यताओं के अनुसार, दूल्हे को राजा का स्वरूप माना जाता है यानी विवाह की रस्म शुरू होने से लेकर विवाह संपन्न होने तक दूल्हा एक राजा के समान होता है। राजा की ही तरह दूल्हे का मान-सम्मान किया जाता है और उसकी हर मांग पूरी की जाती है। राजा हमेशा अपने पास शस्त्र रखते हैं, इसलिए दूल्हे को भी राजा का स्वरूप मानकर कटार या तलवार दी जाती है।
शौर्य और पुरुषार्थ का प्रतीक है तलवार
जब किसी व्यक्ति का विवाह होता है तो वह गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर रहा होता है। इस आश्रम में सफलता पाने के लिए शौर्य और पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है क्योंकि विवाह के बाद उस व्यक्ति की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। उस व्यक्ति पर अपनी पत्नी का भरण-पोषण व रक्षा करने की जिम्मेदारी भी आ जाती है। तलवार या कटार इस बात का प्रतीक होती है वह जीवन भर इस जिम्मेदारी को उठाने के लिए को तैयार है और किसी भी तरह इससे वह पीछे नहीं हटेगा।
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