
उज्जैन. होली (Holi 2022) उत्सव उत्साह और भाईचारे का है। होली के रंगों में सभी एक हो जाते हैं और जाति-धर्म का भेद मिट जाता है। ये उत्सव क्यों मनाया जाता है, इससे जुड़ी कई कथाएं (Holi Stories) और मान्यताएं (Holi Tradition) प्रचलित हैं। इनमें से प्रह्लाद और होलिका की कथा सबसे अधिक प्रचलित है। इसके अलावा भी धर्म ग्रंथों में होली से जुड़ी कई कथाएं और नाम बताए गए हैं, जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं। आज हम आपको इसी के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…
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ढुण्डा राक्षसी की कथा
राजा रघु के राज्य में ढुण्डा नाम की एक राक्षसी ने भगवान शिव से अमरत्व का वर प्राप्त कर लोगों को खासकर बच्चों को सताना शुरू किया। भयभीत प्रजा ने अपनी पीड़ा राजा रघु को बताई। तब राजा रघु के पूछने पर महर्षि वशिष्ठ ने बताया कि खेलते हुए बच्चों का शोर-गुल या हुडदंग उसकी मृत्यु का कारण बन सकता है। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सभी बच्चे एकत्रित होकर नाचने-गाने और तालियां बजाने लगे। जाती हुई शीत ऋतु के कारण सभी ने अग्नि प्रज्वलित की और उसकी परिक्रमा करने लगे। बच्चों द्वारा ये सब करने से अंतत: ढुण्ढा नामक राक्षसी का अंत हुआ। यह दिन ही होलिका तथा कालान्तर में होली के नाम से लोकप्रिय हुआ।
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श्रीकृष्ण ने किया था पूतना वध
द्वापरयुग में कंस मथुरा का राजा था, उसने बालक कृष्ण को मारने के लिए राक्षसी पूतना को भेजा। पूतना की योजना थी कि वह विषयुक्त स्तनपान कराकर बाल कृष्ण को मार देगी, लेकिन बालक कृष्ण ने खेल ही खेल में पूतना का अंत कर दिया। मान्यता है कि ये दिन फाल्गुन पूर्णिमा का था, इसी दिन कृष्ण के बचने की खुशी में लोगों ने रंगों के साथ जश्न मनाया जो एक परंपरा बन गया।
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शिव ने किया था कामदेव को भस्म
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में तारकासुर नाम का एक राक्षस था, जिसके अत्याचारों से देवता काफी परेशान थे। एक वरदान के अनुसार तारकासुर का अंत भगवान शिव और पार्वती की संतान ही कर सकती थी। लेकिन भगवान शिव तपस्या में लीन थे। ऐसे में कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग की और नाराज शिव भगवान ने कामदेव को भस्म कर दिया। बाद में जब कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी से प्रार्थना की तो शिवजी कामदेव को अगले जन्म में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। शिवजी की तपस्या भंग होने की खुशी में देवताओं ने रंगों से उत्सव मनाया। यही उत्सव होली कहलाया।
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जानिए ये बातें भी…
1. लिंगपुराण में होलिका उत्सव को फाल्गुनिका के नाम से जाना जाता है, जिसे बालकों की क्रीड़ाओं से पूर्ण और सुख समृद्धि देने वाला बताया गया है। फाल्गुनिका इसलिए क्योंकि ये पर्व फाल्गुन मास के अंतिम दिन मनाया जाता है।
2. इसी प्रकार वराहपुराण में भी इस उत्सव को पटवास विलासीनी अर्थात् चूर्णयुक्त खेल और लोक कल्याण करने वाला बताया गया है।
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