हिंदू पंचागं के अनुसार चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि को यानी होलिका दहन के अगले दिन होली खेली जाती है। इसे आम भाषा में धुरेड़ी और वसंत उत्सव कहा जाता है। वसंत उत्सव प्रकृति से संबंधित पर्व है। इस बार ये उत्सव 18 मार्च, शुक्रवार को मनाया जाएगा।
उज्जैन. होली (धुरेड़ी) खेलने की प्रथा कैसे शुरू हुई। इससे जुड़ी कई मान्यताएं जनसामान्य में प्रचलित है। ग्रंथों में इस पर्व से जुड़ी कथाएं भी मिलती हैं। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार होली के बाद वसंत ऋतु का असर दिखने लगता है। वसंत ऋतु के संबंध में मान्यता है कि कामदेव ने इस ऋतु को उत्पन्न किया था, ताकि भगवान शिव की तपस्या भंग की जा सके। लेकिन इस प्रयास में कामदेव को शिवजी ने भस्म कर दिया। आगे जानिए क्या है ये पूरी कथा…
जब शिवजी ने कर दिया कामदेव को भस्म
- धर्म ग्रंथों के अनुसार, जब देवी सती ने हवन कुंड में कूदकर प्राण त्याग दिए तब महादेव उनके वियोग में ध्यान में बैठ गए। काफी समय तक शिवजी का ध्यान भंग नहीं हुआ। उस समय तारकासुर ने तप करके ब्रह्माजी को प्रसन्न किया।
- जब ब्रह्माजी प्रकट हुए तो तारकासुर ने वर मांगा कि उसकी मृत्यु सिर्फ शिवजी के पुत्र के द्वारा ही हो। ब्रह्माजी ने तथास्तु कह दिया। इस वरदान से तारकासुर अजय हो गया। तारकासुर का अत्याचार बढ़ रहा था।
- सभी देवताओं ने शिवजी का ध्यान भंग करने के लिए कामदेव से मदद मांगी। कामदेव ने शिवजी का तप भंग करने के लिए वसंत ऋतु को उत्पन्न किया। सुहावने मौसम की वजह से इसे ऋतुराज कहा गया ।
- वसंत ऋतु के मौसम और कामदेव के बाणों से शिवजी का ध्यान टूट गया। इससे शिवजी क्रोधित हो गए और उनका तीसरा नेत्र खुल गया, जिससे कामदेव भस्म हो गए। कुछ समय बाद शिवजी क्रोध शांत हुआ और सभी देवताओं ने तारकासुर को मिले वरदान के बारे में बताया।
- तब कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी से कामदेव को जीवित करने का निवेदन किया। शिवजी ने सती को वरदान दिया कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में कामदेव का फिर से जन्म होगा।
- शिवजी ध्यान टूटने के बाद उनका विवाह माता पार्वती से हुआ। विवाह के बाद कार्तिकेय स्वामी का जन्म हुआ। कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया।