उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा 12 जुलाई से शुरू हो चुकी है। कोरोना के चलते पिछली बार की तरह इस बार भी रथयात्रा में भक्तों का प्रवेश निषेध रहेगा।
उज्जैन. 9 दिन तक चलने वाली रथ यात्रा तय कार्यक्रम के अनुरूप ही संपन्न होगी और सिर्फ 500 सेवकों को इस दौरान रथ खींचने की अनुमति होगी। जिस तरह भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा प्रसिद्ध है, उसी तरह यहां की रसोई भी आकर्षण का केंद्र है। आज हम आपको भगवान जगन्नाथ मंदिर के रसोई से जुड़ी खास बातें बता रहे हैं…
1. जगन्नाथ मंदिर का एक बड़ा आकर्षण यहां की रसोई है। यह रसोई भारत की सबसे बड़ी रसोई के रूप में जानी जाती है।
2. यह रसोई मंदिर के दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। इस रसोई में भगवान जगन्नाथ के लिए भोग तैयार किया जाता है।
3. इस विशाल रसोई में भगवान को चढ़ाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए लगभग 500 रसोइए तथा 300 सहयोगी काम करते हैं।
4. ऐसी मान्यता है कि इस रसोई में जो भी भोग बनाया जाता है, उसका निर्माण माता लक्ष्मी की देखरेख में ही होता है।
5. यहां बनाया जाने वाला हर पकवान हिंदू धर्म पुस्तकों के दिशा-निर्देशों के अनुसार ही बनाया जाता है। भोग पूर्णत: शाकाहारी होता है।
6. भोग में किसी भी रूप में प्याज व लहसुन का भी प्रयोग नहीं किया जाता। भोग निर्माण के लिए मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया जाता है।
7. रसोई के पास ही दो कुएं हैं जिन्हें गंगा व यमुना कहा जाता है। केवल इनसे निकले पानी से ही भोग का निर्माण किया जाता है।
यहां के प्रसाद को कहते हैं महाप्रसाद
जगन्नाथ मंदिर के प्रसाद को महाप्रसाद माना जाता है, जबकि अन्य तीर्थों के प्रसाद को सामान्यतया प्रसाद ही कहा जाता है। भगवान जगन्नाथ के प्रसाद को महाप्रसाद का स्वरूप महाप्रभु वल्लभाचार्यजी के द्वारा मिला। कहते हैं कि महाप्रभु वल्लभाचार्य की निष्ठा की परीक्षा लेने के लिए उनके एकादशी व्रत के दिन पुरी पहुंचने पर मंदिर में ही किसी ने उन्हें प्रसाद दे दिया। महाप्रभु ने प्रसाद हाथ में लेकर स्तवन करते हुए दिन के बाद रात्रि भी बिता दी। अगले दिन द्वादशी को स्तवन की समाप्ति पर उस प्रसाद को ग्रहण किया और उस प्रसाद को महाप्रसाद का गौरव प्राप्त हुआ।
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