बारिश के लिए करवाई जाती है मेंढक-मेंढकी की शादी, जानिए ऐसी ही अजब-गजब परंपराएं

इन दिनों बारिश का मौसम चल रहा है। देश के कुछ स्थानों पर बारिश कहर ढा रही है तो कुछ स्थानों पर सूखे की स्थिति बन रही है। हमारे देश में बारिश करवाने के लिए कई तरह की परंपराओं का पालन किया जाता है। इनमें से कुछ परंपराएं तो बहुत ही अजीब है।

Asianet News Hindi | Published : Jul 14, 2021 3:36 AM IST / Updated: Jul 14 2021, 10:46 AM IST

उज्जैन. बारिश करवाने के लिए कहीं मेंढक-मेंढकी की शादी करवाई जाती है, तो कहीं स्त्री को नग्न करके खेत की जुताई कराई जाती है। इन परंपराओं से जुड़े कई मनोवैज्ञानिक कारण हैं। आज हम आपको इन परंपराओं के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…

मेंढक-मेंढकी की शादी
बारिश के लिए मेंढक-मेंढकी की शादी पारंपरिक रूप से असम में होती थी, लेकिन अब देश के कई हिस्सों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु में इस परंपरा चलन बढ़ता जा रहा है।  लोक प्रथाओं के अनुसार, मेंढक-मेंढकी की शादी का मौसम से कनेक्शन है। मानसून के दौरान मेंढक बाहर निकलता है और टर्राकर मेंढकी को आकर्षित करता है। मेंढक-मेंढकी की शादी एक प्रतीक के तौर पर कराई जाती है जिससे वो दोनों मिलन के लिए तैयार हो जाएं और बारिश आ जाए।

नग्न स्त्री से खेत की जुताई
इस परंपरा के अनुसार, बारिश करवाने के लिए रात में अविवाहित महिलाएं बिना कपड़े पहने खेत जोतती थीं। इस पूरी प्रक्रिया में पुरुषों को दूर रखा जाता था। किसानों की मान्यता है कि अगर खेत जोत रही महिला को कोई देख लेता तो उसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। बिहार, UP और तमिलनाडु के कुछ ग्रामीण इलाकों में ये प्रथा आज भी चल रही है। लोगों की मान्यता है कि इससे बारिश के देवता को शर्म आ जाती है और वे बारिश भेज देते हैं।

तुंबा बजाने की प्रथा
बस्तर में गोंड जनजाति के लोग भीम (पांडव) को अपना लोक देवता मानते हैं। मान्यता के अनुसार जब भी भीम तुंबा बजाते थे, तो बारिश होती थी। ये एक तरह का वाद्ययंत्र है। गोंड में एक समुदाय इसे बजाने का काम करता है, जिसे भीमा कहते हैं। गोंड जनजाति में इनका बेहद सम्मान होता है। इन्हें समारोह में विशेष रूप से बुलाया जाता है।

कीचड़ से नहाने की प्रथा
बस्तर के नारायणपुर इलाके में मुड़िया जनजाति के लोग किसी व्यक्ति को चुनकर भीम देव का प्रतिनिधि बनाकर, उसे गाय के गोबर और कीचड़ से ढंक देते हैं। लोगों की मान्यता है कि इससे देवता को सांस लेने में तकलीफ होगी। इससे राहत के लिए वो बारिश करवाएंगे और कीचड़ धुल जाएगा।
 

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