5 नवंबर से शुरू होगा जैन नववर्ष 2548, जानिए कितना प्राचीन है ये कैलेंडर व अन्य खास बातें

हमारे देश में कई तरह के धर्म और पंथ को मानने वाले लोग रहते हैं। इनमें से अधिकांश पंथ हिंदू धर्म की ही शाखाएं हैं जैसे जैन। जैन धर्म श्रमण परम्परा से निकला है तथा इसके प्रवर्तक हैं 24 तीर्थंकर, जिनमें प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) तथा अन्तिम तीर्थंकर महावीर स्वामी हैं।
 

उज्जैन. जैन धर्म की अत्यन्त प्राचीनता सिद्ध करने वाले अनेक उल्लेख साहित्य और विशेषकर पौराणिक साहित्यो में प्रचुर मात्रा में हैं। श्वेतांबर व दिगम्बर जैन पन्थ के दो सम्प्रदाय हैं। दीपावली के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा पर जैन नववर्ष मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 5 नवंबर, शुक्रवार को है। जैन धर्म में नए साल को वीर निर्वाण संवत कहा जाता है, जिसकी शुरुआत 7 अक्टूबर 527 ई.पू. से हुई मानी जाती है। यह 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण का स्मरण करता है। यह कैलेंडर सबसे पुरानी प्रणाली में से एक है जो अभी भी भारत में उपयोग की जाती है।

इस बार 2548 वीर निर्वाण संवत
जैन वर्ष वीर निर्वाण संवत् 470 वर्ष कार्तिकादि विक्रम संवत् को जोड़कर प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए, वीर निर्वाण संवत 2544 विक्रम 2074, कार्तिका कृष्ण अमावस्या (चैत्रादि और पूर्णिमांत) पर 20 अक्टूबर 2017 की दीपावली के ठीक बाद शुरू हुआ। नया चैत्रादि विक्रम संवत (उत्तर भारत में) चैत्र में सात महीने पहले आरंभ होता है, इस प्रकार चैत्र-कार्तिक कृष्ण के दौरान विक्रम और वीर निवाण संवत का अंतर 439 वर्ष है। इस बार 5 नवंबर, शुक्रवार से वीर निर्वाण संवत 2548 का आरंभ होगा।

ऐसे काम करता है जैन पंचांग
जैन पंचांग भी हिंदू पंचांग की तरह चंद्र-सूर्य पर आधारित है। पृथ्वी के संबंध में चंद्रमा की स्थिति के आधार पर महीने और इसे हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त महीना (अधिक मास) जोड़कर समायोजित किया जाता है, ताकि मौसम के साथ चरण में महीने लाने के लिए सूर्य के साथ संयोग किया जा सके। इसकी तीथि चंद्रमा चरण को दर्शाता है और महीना सौर वर्ष के अनुमानित मौसम को दर्शाता है। जैन कैलेंडर में महीने इस प्रकार हैं- कार्तक, मगसर, पोष, महा, फागन, चैत्र, वैशाख, जेठ, आषाढ़, श्रवण, भादरवो, आसो।

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जैन धर्म में दीवाली का महत्व
जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी ने दीपावली के दिन ही 527 ईसा पूर्व में मोक्ष के बाद निर्वाण प्राप्त किया था। ऐसा माना जाता है कि उत्तर भारत के 18 राजाओं जो महावीर के अनुयायी थे, ने महावीर के ज्ञान के प्रतीक दीपक जलाने का फैसला किया। इसलिए इसे दीपावली या दिवाली के नाम से जाना जाता है।

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