Life Management: एक वृद्ध लोगों को पेड़ पर चढ़ना सीखाता था, उसने अपने छात्रों की परीक्षा ली और बताई सबसे खास बात

हमारे जीवन में ऐसा कई बार होता है कि किसी काम को पूरा करने के कगार पर होकर भी हम उसे पूरा नहीं कर पाते। अंतिम क्षणों में कुछ गड़बड़ हो जाती है और हम पछताते रह जाते हैं। अंतिम क्षणों की ज़रा सी असावधानी से हमारा पूरा काम बिगड़ देती है।

Asianet News Hindi | Published : Jan 17, 2022 7:06 AM IST

उज्जैन. कई बार सफलता के नजदीक पहुंचकर भी हम उसे पाने में असफल हो जाते हैं, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मंजिल के करीब पहुँचकर हम अपना धैर्य खो देते हैं। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है जब तक हम अपना लक्ष्य प्राप्त न कर लें, तब तक हमें धैर्य और संयम नहीं खोना चाहिए।

पेड़ों पर चढ़ना सीखाने वाले बाबा ने दिया जीवन का मूल मंत्र
जंगल के किनारे एक छोटा सा गाँव था। वहां एक आदमी रहता था, जो लोगों को पेड़ पर चढ़ने का प्रशिक्षण देता था। लोग उन्हें प्यार से बाबा बुलाते थे। एक दिन बाबा ने युवकों के समूह को बुलाया, जिन्हें वे पेड़ पर चढ़ने का प्रशिक्षण दे रहे थे। 
वह उस समूह के प्रशिक्षण का अंतिम दिन था। बाबा उन्हें एक पेड़ के पास लेकर गए. वह एक ऊँचा और चिकना पेड़ था, जिस पर चढ़ना बेहद कठिन था।
बाबा युवकों से बोले, “आज तुम्हारे प्रशिक्षण का अंतिम दिन है, मैं देखना चाहता हूँ कि क्या तुम लोग पेड़ पर चढ़ने में माहिर हो गए हो, इसलिए मैं तुम्हें इस चिकने और ऊँचे पेड़ पर चढ़ने की चुनौती दे रहा हूं। यदि तुम सब इस पेड़ पर चढ़ने में सफ़ल रहते हो, तो दुनिया के किसी भी पेड़ पर आसामी से चढ़ सकते हो।”
बाबा की बात सुनकर सभी उत्त्साहित हो गये। वे पेड़ पर चढ़ने के लिए एक पंक्ति में खड़े हो गए। सबसे पहला युवक पेड़ पर चढ़ने लगा. वह बड़ी ही आसानी से पेड़ पर चढ़ा और फिर नीचे उतरने लगा। उतरते समय जब वह आधे रास्ते में था, तब बाबा बोले, “सावधान…आराम से संभलकर उतरो। कोई जल्दी नहीं है।”
उस युवक ने वैसा ही किया। वह आराम से सावधानी से नीचे उतरा। उसके बाद एक-एक कर सारे युवक पेड़ पर चढ़ने लगे। जब वे पेड़ पर चढ़ते, तब तो बाबा उन्हें कुछ नहीं कहते, लेकिन जब वे पेड़ से उतरते समय आधे रास्ते पर होते या बस नीचे पहुँचने वाले होते, तो बाबा कहते, “सुनो, आराम से, थोड़ा संभलकर और पूरी सावधानी से उतरो। किसी प्रकार की कोई जल्दी नहीं है।”
सब बड़े ख़ुश थे, लेकिन एक बात उन्हें खटक रही थी और वह यह थी कि बाबा ने उन्हें पेड़ से उतरते समय ही सावधान रहने को क्यों कहा। पेड़ पर चढ़ते समय क्यों नहीं?
उन्होंने बाबा से पूछ ही लिया, “बाबा आपने पेड़ पर चढ़ते समय हमें संभलकर रहने नहीं कहा. लेकिन उतरते समय जब जमीन तक की दूरी बहुत कम रह गई थी, तब आपने हमें संभलकर और सावधान रहने को कहा, ऐसा क्यों?”
बाबा बोले, “देखो, पेड़ की सबसे ऊपरी शाखा पर चढ़ना बहुत कठिन है, ये मैं भी जानता हूँ और तुम भी। इसलिए मेरे बिना बोले ही तुम पहले से ही सतर्क थे। ऐसा हर किसी के साथ होता है। किंतु सतर्कता और सावधानी में चूक तब होती है, जब हम मंजिल के समीप होते हैं। वहाँ हमारा ध्यान भटक जाता है और हम गलती कर जाते हैं।
युवकों को बाबा की इस बात से जीवन की एक बहुत बड़ी सीख प्राप्त हुई।

लाइफ मैनेजमेंट
कई बार धैर्य खो देने के कारण हमसे चूक हो जाती है, इसलिए जब तक मंजिल तक न पहुँचे, धैर्य बनाकर रखें। कार्य के प्रारंभ में जितना धैर्य और सावधानी आवश्यक है, कार्य समाप्ति तक भी आवश्यक है। 

 

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