माघ मेला: ये साधु हाथ नहीं ‘टल्ली’ में लेते हैं दान, करते हैं बस शिवजी का गुणगान

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चल रहे माघ मेले में अनेक साधु-संत आए हैं। इनमें से कई साधु अपने स्वरूप व विशेषता के कारण लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। भगवान शिव का गुणगान करने वाले जंगम जोगी भी उन्हीं में से एक हैं।

उज्जैन. जंगम जोगियों की टोली सुबह से ही अखाड़ों के संतों के शिविर में जाकर भगवान शिव के गीत गाती है। इसके बदले में वे दान स्वरूप जो भी देते हैं, उसे वे सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं।

हाथ में नहीं लेते दान
जंगम संप्रदाय के देशभर में करीब पांच हजार गृहस्थ संत हैं। वे देशभर के अखाड़ों में घूमते हैं और वहां शिव गुणगान कर दान लेते हैं। सबसे ज्यादा संख्या पंजाब और हरियाणा में हैं। अखाड़ों के दान से इनका परिवार पलता है। भगवान शिव ने कहा था कि कभी माया को हाथ में नहीं लेना, इसलिए दान भी हाथ में नहीं लेते। हाथ में घंटी, जिसे टल्ली कहा जाता है, उसमें दान लेते हैं।

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ऐसे हुई इनकी उत्पत्ति
ऐसी मान्यता है कि जंगम जोगियों की उत्पत्ति शिव-पार्वती के विवाह में हुई थी। जब भगवान शिव ने भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा को विवाह कराने की दक्षिणा देनी चाही तो उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया। तब भगवान शिव ने अपनी जांघ पीटकर जंगम साधुओं को उत्पन्न किया। उन्होंने ने ही महादेव से दान लेकर विवाह में गीत गाए और शेष रस्में पूरी कराई।

ऐसा होता है इनका स्वरूप
जंगम जोगियों का स्वरूप बहुत ही अलग होता है। इसलिए ये लोगों के आकर्षण का केंद्र भी होते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव के विवाह में जंगमों ने ही गीत गाए थे व अन्य रस्में भी निभाई थी, जिससे खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें मुकुट और नाग प्रदान कर दिया। माता पार्वती ने कर्णफूल दिए, नंदी ने घंटी दी, विष्णु ने मोर मुकुट दिया। इससे इनका स्वरूप बना। तभी से ये शैव अखाड़ों में जाकर संन्यासियों के बीच शिवजी का गुणगान करते आ रहे हैं। ये सफेद व केसरिया कपड़े पहनते हैं।

बचपन से ही सीखाते हैं शिवकथा
जंगम जोगियों के परिवार में बचपन से ही बच्चों को शिवपुराण, शिव स्त्रोत आदि याद कराए जाते हैं। जंगम जोगियों के परिवार के सदस्य ही इस परंपरा का आगे बढ़ा सकते हैं। कोई और व्यक्ति इस परंपरा में शामिल नहीं हो सकता। देश में 4 स्थानों (हरिद्वार, इलाहाबाद, नासिक, उज्जैन) पर जब भी कुंभ मेला आयोजित होता है, वहां जंगम जोगी भी जरूर जाते हैं। जंगम साधु गृहस्थ होते हैं और वे शैव संप्रदाय के अखाड़ों के साथ ही स्नान करते हैं।

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