Mahabharata: अश्वत्थामा के इस अस्त्र का नहीं था कोई तोड़, श्रीकृष्ण ने ऐसे की पांडवों की रक्षा

महाभारत (Mahabharat) हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक है। इसके रचयिता महर्षि वेदव्यास (Maharishi Ved Vyas) हैं, जो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। इस ग्रंथ में कई ऐसे पात्र हैं जो देवता और राक्षसों के अवतार थे। महाभारत के अनुसार, पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य (Dronacharya) के पुत्र अश्वत्थामा (Ashwatthama) काल, क्रोध, यम व रुद्र के अंशावतार थे।

Asianet News Hindi | Published : Sep 22, 2021 4:49 AM IST / Updated: Sep 22 2021, 12:37 PM IST

उज्जैन. आचार्य द्रोण ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने की लिए घोर तपस्या की और भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि वे उनके पुत्र के रूप में अवतीर्ण होंगे। समय आने पर सवन्तिक रुद्र ने अपने अंश से द्रोण के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया।

जब अश्वत्थामा (Ashwatthama) ने चलाया नारायण अस्त्र
कुरुक्षेत्र के युद्ध में जब पांडवों के सेनापति धृष्टद्युम्न में छल से गुरु द्रोणाचार्य का वध कर दिया तो अश्वत्थामा क्रोध में पागल हो गया। उसमें नारायण अस्त्र चलाकर पांडव सेना में खलबली मचा दी। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि इस अस्त्र का कोई तोड़ संसार में नहीं है, इसलिए सभी लोग अपने वाहन से नीचे उतरकर शस्त्र नीचे रख दें और इस नारायण अस्त्र की शरण में चले जाएं, तभी ये शांत होगा। सभी ने ऐसा ही किया, लेकिन भीम अपने रथ से नीचे नहीं उतरे। तब भीम के प्राण संकट में देख श्रीकृष्ण ने उन्हें रथ से नीचे उतारा। इस तरह नारायण अस्त्र शांत हो गया। 

कौरवों के अंतिम सेनापति थे अश्वत्थामा (Ashwatthama)
मरने से पहले दुर्योधन ने अश्वत्थमा को अपना सेनापति बनाया और पांडवों का सर्वनाश करने को कहा। अश्वत्थामा ने उसी रात कृतवर्मा व कृपाचार्य के साथ पांडवों के शिविर पर हमला कर दिया। उस समय वहां पांडव नहीं थे। क्रोधित अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पांचों पुत्रों का पांडव समझकर वध कर दिया। साथ ही अन्य योद्धाओं की भी हत्या कर दी।

अष्ट चिरंजीवियों में से एक है अश्वत्थामा (Ashwatthama)
महाभारत के अनुसार जब अश्वत्थामा ने सोते हुए द्रौपदी के पुत्रों का वध कर दिया तो क्रोधित होकर भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था। इसलिए ऐसा माना जाता है कि अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं। इस संबंध में एक श्लोक भी प्रचलित है
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

अर्थात- अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास, हनुमानजी, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम व ऋषि मार्कण्डेय- ये आठों अमर हैं।

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