महेश नवमी 19 जून को, इस दिन की जाती है शिव-पार्वती की पूजा, जानिए शुभ मूहुर्त और पूजन विधि

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महेश नवमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 19 जून, शनिवार को है। महेश्वरी समाज की उत्पत्ति भगवान शिव के वरदान स्वरूप मानी गई है जिसका उत्पत्ति दिवस ज्येष्ठ शुक्ल नवमी है।

उज्जैन. महेश्वरी समाज के द्वारा महेश नवमी का पर्व बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की विशेष आराधना की जाती है। 

महेश नवमी 2021 पूजा मुहूर्त
नवमी तिथि प्रारंभ: 18 जून, 2021 रात 08:35 बजे
नवमी तिथि समापन: 19 जून 2021 शाम 06:45 बजे

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पूजन विधि
- महेश नवमी की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद शिव मूर्ति के समीप पूर्व या उत्तर में मुख करके बैठ जाएं। हाथ में जल, फल, फूल और चावल लेकर इस मंत्र से संकल्प लें-
मम शिवप्रसाद प्राप्ति कामनया महेशनवमी-निमित्तं शिवपूजनं करिष्ये।
- यह संकल्प करके माथे पर भस्म का तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करें। उत्तम प्रकार के गंध, फूल और बिल्वपत्र आदि से भगवान शिव-पार्वती की पूजा करें।
- यदि शिव मूर्ति न हो तो गीली चिकनी मिट्टी से अंगूठे के आकार की मूर्ति बनाएं। मूर्ति बनाते समय महेश्वराय नम: का स्मरण करते रहें।
- इसके बाद शूलपाणये नम: से प्रतिष्ठा और पिनाकपाणये नम: से आह्वान करके शिवाय नम: से स्नान कराएं और पशुपतये नम: से गन्ध, फूल, धूप, दीप और भोग अर्पण करें।
- इसके बाद इस प्रकार भगवान शिव से प्रार्थना करें-
जय नाथ कृपासिन्धोजय भक्तार्तिभंजन।
जय दुस्तरसंसार-सागरोत्तारणप्रभो॥
प्रसीदमें महाभाग संसारात्र्तस्यखिद्यत:।
सर्वपापक्षयंकृत्वारक्ष मां परमेश्वर॥
- इस प्रकार पूजन करने के बाद उद्यापन करके शिव मूर्ति का विसर्जन कर दें। इस प्रकार महेश नवमी पर भगवान शिव का पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है।

माहेश्वरी समाज से जुड़ी पौराणिक कथा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे। शिकार के दौरान वे ऋषियों के शाप से ग्रसित हुए। तब इस दिन भगवान शिव ने उन्हें शाप से मुक्त कर उनके पूर्वजों की रक्षा की व उन्हें हिंसा छोड़कर अहिंसा का मार्ग बतलाया था। महादेव ने अपनी कृपा से इस समाज को अपना नाम भी दिया इसलिए यह समुदाय 'माहेश्वरी' नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान शिव की आज्ञा से ही माहेश्वरी समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोड़कर वैश्य समाज को अपनाया, तब से ही माहेश्वरी समाज व्यापारिक समुदाय के रूप में पहचाना जाता है।

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