Narak Chaturdashi 2022: दीपावली के एक दिन पहले नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इसे रूप चतुर्दशी और छोटी दिवाली भी कहते हैं। इस बार ये पर्व 23 अक्टूबर, रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन यमराज की पूजा की जाती है।
उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi 2022) का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 23 अक्टूबर, रविवार को है। इसे रूप चतुर्दशी, यम चतुर्दशी और छोटी दिवाली भी कहते हैं। इस पर्व से जुड़ी कई मान्यताएं और परंपराएं हैं।
इस दिन अभ्यंग स्नान की परंपरा
नरक चतुर्दशी की सुबह तेल मालिश करने के बाद औषधियुक्त जल से स्नान करने की परंपरा है। इसे ही अभ्यंग स्नान करते हैं। मान्यता है कि नरकासुर का वध करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने भी इसी प्रकार स्नान किया था। तभी से ये परंपरा चली आ रही है। इस दिन सुबह अभ्यंग स्नान करने के बाद भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण के मंदिर में जरूर जाना चाहिए। इससे पापों से मुक्ति मिलती है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
नरक चतुर्दशी को क्यों कहते हैं छोटी दिवाली? (Why Narak Chaturdashi is called Choti Diwali?)
ग्रंथों के अनुसार, द्वापर युग में नरकासुर नाम का एक महाभयंकर राक्षस था। भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को उसका वधकर उसकी कैद से 16 हजार स्त्रियों की रक्षा की थी। इसी खुशी में लोगों ने दीपक जलाकर उत्सव मनाया था। दीपावली के एक दिन पहले दीपोत्सव मनाने के कारण ही इसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है।
राजा रंतिदेव से जुड़ी है इस पर्व की कथा (Narak Chaturdashi Katha)
- पुराणों के अनुसार, प्राचीन काल में रंतिदेव नाम के एक दयालु राजा थे। वे कभी किसी को निराश नहीं करते, उनके दरवाजे से कभी कोई खाली हाथ नहीं जाता था। इसलिए इन्हें दानवीर भी कहा जाता था।
- एक दिन अचानक असमय राजा रंतिदेव के सामने यमदूत नरक ले जाने आ गए। राजा रंतिदेव ने उनसे पूछा कि “मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया और न ही कोई मेरे महल से खाली हाथ गया, तो फिर मैं नरक क्यों जाऊं?
- यह सुनकर यमदूत ने कहा कि “राजन, एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था, यह उसी पाप कर्म का फल है।” यमदूतों की बात सुनकर राजा ने यमदूतों से एक वर्ष का समय मांगा। यमदूतों ने ऐसा ही किया।
- राजा रंतिदेव ने ये बात जाकर ऋषि-मुनियों को बताई और इस समस्या का हल पूछा। तब ऋषियों ने उन्हें बताया कि “आप कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवाकर अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।”
- ऋषियों के कहने पर राजा ने वैसा ही किया और पाप मुक्त हुए। इसके पश्चात उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।
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