नवरात्रि में योग-साधना कर जाग्रत करें शरीर के सप्तचक्र, हर मुश्किल हो जाएगी आसान

हमारे पूर्वजों ने नवरात्रि (Shardiya Navratri 2021) में माता की भक्ति के साथ ही योग का विधान भी निश्चित किया है। हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं। नवरात्रि में हर दिन एक विशेष चक्र को जाग्रत किया जाता है, जिससे हमें ऊर्जा प्राप्त होती है। 

Asianet News Hindi | Published : Oct 7, 2021 3:44 PM IST

उज्जैन. हम अगर नवरात्रि में योग साधना कर प्राप्त ऊर्जा का ठीक प्रबंधन कर लें तो असाधारण सफलता भी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। जैसे-जैसे हम ऊर्जा को एक-एक चक्र से ऊपर उठाते जाते हैं, हमारे व्यक्तित्व में चमत्कारी परिवर्तन दिखने लगते हैं। आज हम आपको शरीर में स्थित सातों चक्रों के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार है-

प्रथम चक्र है मूलाधार
मूलाधार या मूल चक्र प्रवृत्ति, सुरक्षा, अस्तित्व और मानव की मौलिक क्षमता से संबंधित है। यह केंद्र गुप्तांग और गुदा के बीच अवस्थित होता है। इस क्षेत्र में एक मांसपेशी होती है, जो यौन क्रिया में स्खलन को नियंत्रित करती है। मूलाधार चक्र का प्रतीक लाल रंग और चार पंखुडिय़ों वाला कमल है। इसका मुख्य विषय कामवासना और लालसा है। शारीरिक रूप से मूलाधार काम-वासना को, मानसिक रूप से स्थायित्व को, भावनात्मक रूप से इंद्रिय सुख को और आध्यात्मिक रूप से सुरक्षा की भावना को नियंत्रित करता है।

दूसरा चक्र है स्वाधिष्ठान
स्वाधिष्ठान चक्र त्रिकास्थि (कमर के पीछे की तिकोनी हड्डी) में अवस्थित होता है और अंडकोष या अंडाश्य के परस्पर के मेल से विभिन्न तरह का यौन अंत:स्राव उत्पन्न करता है, जो प्रजनन चक्र से जुड़ा होता है। त्रिक चक्रका प्रतीक छह पंखुडिय़ों और उससे परस्पर जुदा नारंगी रंग का एक कमल है। स्वाधिष्ठान का मुख्य विषय संबंध, हिंसा, व्यसनों, मौलिक भावनात्मक आवश्यकताएं और सुख है। शारीरिक रूप से स्वाधिष्ठान प्रजनन, मानसिक रूप से रचनात्मकता, भावनात्मक रूप से खुशी और आध्यात्मिक रूप से उत्सुकता को नियंत्रित करता है।

तीसरा चक्र है मणिपुर
मणिपुर या मणिपुरक चक्र चयापचय और पाचन तंत्र से संबंधित है। ये चक्र नाभि स्थान पर होता है। ये पाचन में, शरीर के लिए खाद्य पदार्थों को ऊर्जा में रूपांतरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसका प्रतीक दस पंखुडिय़ों वाला कमल है। मणिपुर चक्र से मेल खाता रंग पीला है। मुख्य विषय जो मणिपुर द्वारा नियंत्रित होते हैं, वे हैं- निजी बल, भय, व्यग्रता और सहज या मौलिक से लेकर जटिल भावना तक के परिवर्तन। शारीरिक रूप से मणिपुर चक्र पाचन, मानसिक रूप से निजी बल, भावनात्मक रूप से व्यापक्ता और आध्यात्मिक रूप से सभी उपादानों के विकास को नियंत्रित करता है।

चौथा चक्र है अनाहत
अनाहत चक्र बाल्यग्रंथि से संबंधित है, यह सीने में स्थित होता है। बाल्यग्रंथि प्रतिरक्षा प्रणाली का तत्व है, इसके साथ ही यह अंत:स्त्रावी तंत्र का भी हिस्सा है। यह चक्र तनाव के प्रतिकूल प्रभाव से भी बचाव का काम करता है। अनाहत का प्रतीक बारह पंखुडिय़ों का एक कमल है। अनाहत हरे या गुलाबी रंग से संबंधित है। अनाहत से जुड़े मुख्य विषय जटिल भावनाएं, करुणा, सहृदयता, समर्पित प्रेम, संतुलन, अस्वीकृति और कल्याण है। शारीरिक रूप से अनाहत संचालन को नियंत्रित करता है, भावनात्मक रूप से अपने और दूसरों के लिए समर्पित प्रेम, मनासिक रूप से आवेश और आध्यात्मिक रूप से समर्पण को नियंत्रित करता है।

पांचवां चक्र है विशुद्ध
यह चक्र गलग्रंथि, जो गले में होती है, के समानांतर है और थायरॉयड हारमोन उत्पन्न करता है, जिससे विकास और परिपक्वता आती है। इसका प्रतीक सोलह पंखुडिय़ों वाला कमल है। विशुद्ध की पहचान हल्के या पीलापन लिये हुए नीला या फिरोजी रंग है। यह आत्माभिव्यक्ति और संप्रेषण जैसे विषयों को नियंत्रित करता है। शारीरिक रूप से विशुद्ध संप्रेषण, भावनात्मक रूप से स्वतंत्रता, मानसिक रूप से उन्मुक्त विचार और आध्यात्मिक रूप से सुरक्षा की भावना को नियंत्रित करता है।

छठा चक्र है आज्ञा
आज्ञा चक्र दोनों भौहों के मध्य स्थित होता है। आज्ञा चक्र का प्रतीक दो पंखुडिय़ों वाला कमल है और यह सफेद, नीले या गहरे नीले रंग से मेल खाता है। आज्ञा का मुख्य विषय उच्च और निम्न अहम को संतुलित करना और अंतरस्थ मार्गदर्शन पर विश्वास करना है। आज्ञा का निहित भाव अंतज्र्ञान को उपयोग में लाना है। मानसिक रूप से, आज्ञा दृश्य चेतना के साथ जुड़ा होता है। भावनात्मक रूप से, आज्ञा शुद्धता के साथ सहज ज्ञान के स्तर से जुड़ा होता है।

सातवां है सहस्त्रार
सहस्रार को आमतौर पर शुद्ध चेतना का चक्र माना जाता है। यह मस्तक के ठीक बीच में ऊपर की ओर स्थित होता है। इसका प्रतीक कमल की एक हजार पंखुडिय़ां हैं और यह सिर के शीर्ष पर अवस्थित होता है। सहस्रार चक्र बैंगनी रंग का प्रतिनिधित्व करता है और यह आतंरिक बुद्धि और दैहिक मृत्यु से जुड़ा होता है। सहस्रार का आतंरिक स्वरूप कर्म के निर्मोचन से, दैहिक क्रिया ध्यान से, मानसिक क्रिया सार्वभौमिक चेतना और एकता से और भावनात्मक क्रिया अस्तित्व से जुड़ा होता है।

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