हिंदू धर्म में हर तिथि का एक विशेष महत्व बताया गया है। इन सभी तिथियों में एकादशी तिथि का महत्व सबसे अधिक है क्योंकि इसके स्वामी स्वयं भगवान विष्णु है।
उज्जैन. पंचांग के अनुसार महीने के दोनों पक्ष (शुक्ल व कृष्ण) में एकादशी तिथि आती है। इस तरह एक महीने में 2 एकादशी तिथि के अनुसार पूरे साल में 24 एकादशी व्रत किए जाते हैं। जिस साल अधिक मास होता है, इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। इन सभी एकादशियों में से निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi 2022) का महत्व सबसे अधिक माना गया है। इस बार ये व्रत 10 जून (पंचांग भेद के कारण 11 जून को भी) किया जाएगा। हर एकादशी (Nirjala Ekadashi 2022 Tradition) तिथि से जुड़े कुछ विशेष नियम (Nirjala Ekadashi 2022 Rules) होते हैं, लेकिन एक नियम ऐसा है जो हर एकादशी पर लागू होता है वो है एकादशी तिथि पर चावल न खाना। आगे जानिए इस नियम से जुड़ी खास बातें…
जानिए एकादशी से जुड़ा ये खास नियम
वैसे तो जो लोग निर्जला एकादशी पर व्रत करते हैं, उन्हें इस दिन कुछ भी खाना-पानी नहीं चाहिए, लेकिन जो लोग व्रत नहीं करते, उन्हें भी इस दिन चावल भूल से भी नहीं खाना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो लोग एकादशी तिथि पर चावल खाते हैं, उन्हें अगले जन्म में रेंगने वाले जीव के रूप में जन्म लेना पड़ता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर का त्याग कर दिया और उनके अंश पृथ्वी में समा गए और बाद में उसी स्थान पर वे चावल के रूप में उत्पन्न हुए। इस कारण चावल को जीवित माना जाता है। जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया उस दिन एकादशी तिथि थी। इसलिए एकादशी पर चावल नहीं खाने की परंपरा है।
चावल में अधिक होती है जल तत्व की मात्रा
एकादशी तिथि पर चावल न खाने की पीछे एक और कारण भी है वो ये है कि चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है क्योंकि ये पानी में ही उत्पन्न होता है और पानी में ही पकता है। चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होने से इस पर चंद्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है। एकादशी तिथि पर चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है इससे मन विचलित और चंचल हो जाता है। जिसके कारण मन में अनुचित विचार आते हैं, इसलिए एकादशी पर चावल और इससे बनी चीजें खाना वर्जित माना गया है।
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