सार
धर्म ग्रंथों के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi 2022) का व्रत किया जाता है। इस एकादशी का महत्व साल भर में आने वाली सभी 23 एकादशियों से अधिक माना गया है।
उज्जैन. निर्जला एकादशी पर बिना कुछ खाए-पिए पूरे दिन भूखा रहना पड़ता है और इसी अवस्था में भगवान विष्णु की पूजा करनी होती है। इसे भीमसेनी एकादशी (Bhimseni Ekadashi 2022) भी कहते हैं क्योंकि कथाओं के अनुसार, कुंती पुत्र भीम साल भर में सिर्फ यही एक व्रत करते थे। इस बार निर्जला एकादशी को लेकर ज्योतिषियों में मतभेद है। कुछ ज्योतिषियों का कहना है कि इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 10 जून, शुक्रवार को किया जाएगा तो कुछ विद्ववानों का मानना है कि ये व्रत 11 जून, शनिवार को किया जाना चाहिए। आगे जानिए ज्योतिषियों में ये मतभेद की स्थिति क्यों बन रही है…
- पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 10 जून, शुक्रवार की सुबह 07.25 से शुरू होगी, इसका समापन अगले दिन यानी 11 जून, शनिवार को सुबह 05.45 मिनट पर हो रहा है। शैव मत के अनुसार, निर्जला एकादशी का व्रत 10 जून, शुक्रवार को करना श्रेष्ठ रहेगा क्योंकि ये तिथि इस दिन पूरे समय रहेगी।
- जबकि वैष्णव मत के अनुसार, एकादशी तिथि का सूर्योदय 11 जून, शनिवार को होगा, इसलिए ये व्रत 11 जून, शनिवार को करना ही श्रेष्ठ रहेगा। उसके अनुसार, एकादशी और द्वदाशी की युति में एकादशी व्रत करना श्रेष्ठ होता है। शनिवार को निर्जला एकादशी पर त्रिपुष्कर योग और सर्वार्थ सिद्धि नाम के शुभ योग भी बन रहे हैं।
- विद्वानों के अनुसार, 11 जुन, शनिवार को एकादशी तिथि सुबह 5:45 तक रहेगी। इसके बाद द्वादशी तिथि शुरू हो जाएगी, जो रात 3 बजे तक रहेगी और इसके बाद त्रियोदशी तिथि आरंभ होगी। इस तरह एक ही दिन में 3 तिथियों का संयोग इस दिन बन रहा है। निर्जला एकादशी व्रत अपने क्षेत्र के पंचांग और विद्वानों के मतों को ध्यान में रखकर करना ही श्रेष्ठ रहेगा।
गायत्री जयंती (Gayatri Jayanti 2022) को लेकर भी मतभेद
पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि पर ही गायत्री जयंती का पर्व भी मनाया जाता है। इस पर्व को लेकर भी मतभेद की स्थिति बन रही है। कुछ पंचांगों में 10 जून, शुक्रवार तो कुछ में 11 जून, शनिवार को ये पर्व होना बताया जा रहा है। देवी गायत्री को वेदमाता भी कहा जाता है। इस बार गायत्री जयंती का पर्व कब मनाएं, इसको लेकर अपने क्षेत्र के पंचांग और विद्वानों की बातों का अनुसरण करें।
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