प्रियंका गांधी ने किए शाकुंभरी देवी के दर्शन, 51 शक्तिपीठों में से एक इसी मंदिर में गिरा था देवी सती का शीश

कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी बुधवार को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में आयोजित किसान महापंचायत में शामिल होने पहुंची। इसके पहले प्रियंका गांधी ने वहां के प्रसिद्ध शाकुंभरी मंदिर में माथा टेका और पूजा-अर्चना भी की।

उज्जैन. कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी बुधवार को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में आयोजित किसान महापंचायत में शामिल होने पहुंची। इसके पहले प्रियंका गांधी ने वहां के प्रसिद्ध शाकुंभरी मंदिर में माथा टेका और पूजा-अर्चना भी की। इस दौरान प्रियंका के गले में चुन्नी और हाथ में लाल कपड़ा था। उनके साथ यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी साथ थे।

जानिए क्यों खास है ये मंदिर

यह मंदिर सहारनपुर से 40 किलोमीटर दूर बेहट तहसील में स्थित है। वैसे तो इस मंदिर का को इतिहास ज्ञात नहीं है लेकिन माना जाता है कि शिवालिक पर्वत श्रृंखला के बीच में स्थित यह मंदिर मराठों द्वारा बनवाया गया है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता के अनुसार इस स्थान पर देवी सती का शीश यानी सिर गिरा था। मंदिर में अंदर मुख्य प्रतिमा शाकुंभरी देवी की है। इनके दाईं ओर भीमा व भ्रामरी और बायीं ओर शताक्षी देवी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है।

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चरवाहे ने किए थे प्रथम दर्शन

जनश्रुतियों के अनुसार देवी के इस धाम के प्रथम दर्शन एक चरवाहे ने किये थे, जिसकी समाधि आज भी मंदिर परिसर मे बनी हुई है। देवी के मंदिर से कुछ दूरी पर भूरा देव का मंदिर है, जो भैरव महाराज को समर्पित है। भूरा देव को देवी शाकुंभरी के गार्ड के रूप में पूजा जाता है। नवरात्रि और होली पर यहां मेला लगता है। इस दौरान माता के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ उमडती है। भक्त पहले भूरा देव के दर्शन करते हैं फिर देवी के मंदिर में आते हैं।

धर्म ग्रंथो में भी मिलता है देवी शाकुंभरी का ‌वर्णन

दानवों के उत्पात से त्रस्त भक्तों ने कई वर्षों तक सूखा एवं अकाल से ग्रस्त होकर देवी दुर्गा से प्रार्थना की। तब देवी इस अवतार में प्रकट हुईं, उनकी हजारों आखें थीं। अपने भक्तों को इस हाल में देखकर देवी की इन हजारों आंखों से नौ दिनों तक लगातार आंसुओं की बारिश हुई, जिससे पूरी पृथ्वी पर हरियाली छा गई। यही देवी शताक्षी के नाम से भी प्रसिद्ध हुई एवं इन्ही देवी ने कृपा करके अपने अंगों से कई प्रकार की शाक, फल एवं वनस्पतियों को प्रकट किया। इसलिए उनका नाम शाकंभरी प्रसिद्ध हुआ।

ऐसा है माता शाकुंभरी का स्वरूप

धर्म ग्रंथों के अनुसार देवी शाकंभरी आदिशक्ति दुर्गा के अवतारों में एक हैं। दुर्गा के सभी अवतारों में से रक्तदंतिका, भीमा, भ्रामरी, शाकंभरी प्रसिद्ध हैं। दुर्गा सप्तशती के मूर्ति रहस्य में देवी शाकंभरी के स्वरूप का वर्णन इस प्रकार है-

मंत्र
शाकंभरी नीलवर्णानीलोत्पलविलोचना।
मुष्टिंशिलीमुखापूर्णकमलंकमलालया।।

अर्थात- देवी शाकंभरी का वर्ण नीला है, नील कमल के सदृश ही इनके नेत्र हैं। ये पद्मासना हैं अर्थात् कमल पुष्प पर ही विराजती हैं। इनकी एक मुट्‌ठी में कमल का फूल रहता है और दूसरी मुट्‌ठी बाणों से भरी रहती है।

कैसे पहुंचें?

शाकुंभरी मंदिर जाने के लिए आपको सबसे पहले सहारनपुर पहुंचना पड़ेगा। दिल्ली से सहारनपुर लगभग 182 किलोमीटर दूर पड़ता है और पंजाब की ओर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए अंबाला वाया यमुना नगर मार्ग अत्याधिक सुगम है। चंडीगढ़ से पंचकूला होते हुए नेशनल हाईवे 73 द्वारा सीधे सहारनपुर पहुंचा जा सकता है। सहारनपुर के निकटतम हवाई अड्डा देहरादून चंडीगढ़ और दिल्ली है जो लगभग 50 से 150 किलोमीटर तक के दायरे में हैं। हिमाचल प्रदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सहारनपुर आना जरूरी नहीं है। पौंटा साहिब से हथिनी कुंड बैराज होते हुए बेहट पहुंचा जा सकता है। बेहट से शाकंभरी देवी का मंदिर 16 किमी दूर है।

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