ऋषि पंचमी 3 सितंबर को, इस दिन इन सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है

Published : Sep 02, 2019, 04:19 PM ISTUpdated : Sep 02, 2019, 04:27 PM IST
ऋषि पंचमी 3 सितंबर को, इस दिन इन सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है

सार

हिन्दू धर्म में वेदों का काफी अधिक महत्व है। चारों वेदों में हजारों मंत्र हैं और इन मंत्रों की रचना की है ऋषियों ने। मंत्रों की रचना में कई ऋषियों का योगदान रहा है, इन ऋषियों में सप्त ऋषि ऐसे हैं, जिनका हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा योगदान माना गया है।

उज्जैन. इस बार 3 सितंबर, मंगलवार को ऋषि पंचमी है। इस तिथि पर सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है। सप्त ऋषियों के संबंध में मतभेद भी हैं। अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग सप्त ऋषि बताए गए हैं। यहां बताए गए सप्त ऋषि सबसे ज्यादा नामावली के आधार पर बताए गए हैं।

वशिष्ठ 
ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ के कुलगुरु और चारों पुत्र श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर पर दशरथ ने श्रीराम और लक्ष्मण को ऋषि विश्वामित्र के साथ राक्षसों का वध करने के लिए भेजा था।

विश्वामित्र
ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र एक राजा थे। विश्वामित्र ने घोर तपस्या कर ये पद प्राप्त किया था। उनकी तपस्या से इंद्र आदि सभी देवता भयभीत हो गए थे। तब मेनका ने विश्वामित्र की तपस्या भंग की थी।

कण्व
वैदिक काल के ऋषि हैं कण्व, इन्होंने अपने आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण किया था। भरत के नाम पर ही इस देश का नाम भारत पड़ा।

भारद्वाज 
वैदिक ऋषियों में भारद्वाज ऋषि का स्थान काफी ऊंचा है। वनवास के दौरान भगवान श्रीराम कुछ दिन भारद्वाज ऋषि के आश्रम में भी रूके थे। भारद्वाज ऋषि ने वेदों में कई मंत्र रचे हैं। उन्होंने भारद्वाज स्मृति और भारद्वाज संहिता की भी रचना की है।

अत्रि 
महर्षि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र बताए गए हैं। इनकी पत्नी का नाम अनुसूया है। वनवास के दौरान माता अनुसूया ने सीता को पतिव्रत धर्म का उपदेश दिया था। ये भगवान दत्तात्रेय, चंद्रमा और दुर्वासा के पिता भी हैं।

वामदेव 
वामदेव ने सामगान यानी संगीत की रचना की है। ये गौतम ऋषि के पुत्र बताए गए हैं। भरत मुनि द्वारा रचित भरत नाट्य शास्त्र सामवेद से ही प्रेरित है। हजारों साल पहले रचे गए सामवेद में संगीत और वाद्य यंत्रों की संपुर्ण जानकारी मिलती है।

शौनक 
प्राचीन समय में शौनक ऋषि ने 10 हजार विद्यार्थियों का गुरुकुल स्थापित किया और कुलपति बनने का सम्मान प्राप्त किया था।

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