Sawan: ग्रेनाइट से बना है ये 13 मंजिला शिव मंदिर, बगैर नींव के 1 हजार साल से है टिका

Published : Aug 09, 2021, 10:43 AM ISTUpdated : Aug 09, 2021, 11:14 AM IST
Sawan: ग्रेनाइट से बना है ये 13 मंजिला शिव मंदिर, बगैर नींव के 1 हजार साल से है टिका

सार

हमारे देश में भगवान शिव के अनेक मंदिर (Shiva Temple) हैं। इन मंदिरों में सावन (Sawan) मास में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। इनमें से कई मंदिरों से कुछ रहस्य भी जुड़े हैं। ऐसा ही एक मंदिर है तमिलनाडु (Tamil Nadu) के तंजौर (Tanjore) में स्थित बृहदीश्वर मंदिर (Brihadisvara Temple)। इसे तंजौर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर से जुड़ी कई विशेषताएं इसे खास बनाती हैं। ये मंदिर हजार साल से बिना नींव के जस का तस खड़ा है।

उज्जैन.  तमिलनाडु (Tamil Nadu) के तंजौर (Tanjore) में स्थित बृहदीश्वर मंदिर (Brihadisvara Temple) का निर्माण 1003-1010 ई. के बीच चोल शासक प्रथम राजराज चोल ने करवाया था। उनके नाम पर ही इसे राजराजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि इस मंदिर को बनाने को लेकर उन्हें एक सपना आया था, जब वो श्रीलंका की यात्रा पर निकले हुए थे।  

ग्रेनाइट से बना है मंदिर
यह मंदिर पूरी तरह से ग्रेनाइट से निर्मित है। दुनिया में यह संभवत: अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो ग्रेनाइट का बना हुआ है। यह अपनी भव्यता, वास्तुशिल्प और गुंबद की वजह से दुनियभर में मशहूर है। यह मंदिर यूनेस्को (UNESCO) की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल है। मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम्‌ के भीतर एक चौकोर मंडप है। वहां चबूतरे पर नन्दी जी विराजमान हैं। नन्दी जी की यह प्रतिमा 6 मीटर लंबी, 2.6 मीटर चौड़ी तथा 3.7 मीटर ऊंची है। भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नन्दी जी की यह दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है।

13 मंजिला है ये मंदिर
भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर 13 मंजिला है, जिसकी ऊंचाई लगभग 66 मीटर है। वैसे आमतौर पर बिना नींव के तो न ही कोई मकान बनता है और न ही किसी प्रकार की अन्य इमारत। लेकिन इस विशालकाय मंदिर की सबसे आश्चर्यजनक बात ये है कि यह बगैर नींव के हजारों साल से खड़ा है। यह एक रहस्य ही है कि बिना नींव के यह कैसे इतने साल से टिका हुआ है। 

कलश का रहस्य
इस मंदिर की एक और विशेषता ये है कि इसके शिखर पर एक स्वर्णकलश स्थित है और ये स्वर्णकलश जिस पत्थर पर स्थित है, उसका वजन करीब 80 टन बताया जाता है, जो एक ही पत्थर से बना हुआ है। अब इतने वजनदार पत्थर को मंदिर के शिखर पर कैसे ले जाया गया होगा, यह अब तक एक रहस्य ही बना हुआ है, क्योंकि उस समय तो क्रेन तो नहीं होते थे।

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