इंदिरा एकादशी 2 अक्टूबर को, ये व्रत करने से पितरों को मिलता है मोक्ष, जानिए विधि और शुभ मुहूर्त

आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi 2021) कहा जाता है। पितृपक्ष में आने के कारण इस एकादशी का महत्व अधिक होता है। इस बार इंदिरा एकादशी 2 अक्टूबर, शनिवार को है। 

उज्जैन. यदि कोई पूर्वज जाने-अनजाने में हुए अपने पाप कर्मों के कारण मुक्त नहीं हो पा रहे हैं तो उनके वंशज इंदिरा एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत कर इसका पुण्यफल पितरों को दे दें तो उन्हें मोक्ष मिल जाता है।

इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi 2021) का शुभ मुहूर्त
इंदिरा एकादशी आरंभ- 01 अक्टूबर रात को 11. 03 मिनट से 
एकादशी तिथि समाप्त- 2 अक्टूबर रात को 11. 10 मिनट पर
व्रत पारण का समय- 03 अक्टूबर को सुबह 06.15 से 08.37 मिनट तक

इस विधि से करें व्रत
- एकादशी तिथि से एक दिन पहले यानी दशमी तिथि (1 अक्टूबर, शुक्रवार) को संयम पूर्वक व्यवहार करें। एकादशी तिथि की सुबह दातून आदि करके स्नान करें।
- इसके बाद संकल्प करें कि- मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार (बिना कुछ खाए-पिए) एकादशी का व्रत करूंगा या करूंगी। मैं आपकी शरण में हूं, आप मेरी रक्षा कीजिए।
- इस प्रकार संकल्प लेने के बाद भगवान शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार कराएं और दक्षिणा दें।
- पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए, उसे गाय को दें तथा ध़ूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें। रात में भगवान की प्रतिमा के निकट जागरण करें।
- इसके बाद द्वादशी तिथि (3 अक्टूबर, रविवार) को सुबह होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएं। भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित मौन होकर भोजन करें। इस प्रकार व्रत करने से पितरों को स्वर्ग में स्थान मिलता है।

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ये है कथा
सतयुग में महिष्मति नाम की नगरी में राजा इंद्रसेन राज करते थे। वे बड़े धर्मात्मा थे और उनकी प्रजा सुख चैन से रहती थी। एक दिन नारद जी इंद्रसेन के दरबार में आए और बोले- मैं तुम्हारे पिता का संदेश लेकर आया हूं जो इस समय पूर्व जन्म में एकादशी का व्रत भंग होने के कारण यमराज के निकट दंड भोग रहे हैं। नारदजी के मुख से इंद्रसेन अपने पिता की पीड़ा को सुनकर व्यथित हो गए और पिता के मोक्ष का उपाय पूछने लगे। तब नारदजी ने कहा कि- राजन तुम इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi 2021) का विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत के पुण्य को अपने पिता के नाम दान कर दो। इससे तुम्हारे पिता को मुक्ति मिल जाएगी। राजा इंद्रसेन ने ऐसा ही किया जिससे उनके पिता की आत्मा को शांति मिल गई।

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