7 अक्टूबर को कर सकते हैं मातामह श्राद्ध, जानिए धर्म ग्रंथ क्या कहते हैं इस के बारे में

Published : Oct 06, 2021, 01:41 PM IST
7 अक्टूबर को कर सकते हैं मातामह श्राद्ध, जानिए धर्म ग्रंथ क्या कहते हैं इस के बारे में

सार

धर्म ग्रंथों के अनुसार सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या (Sarvapitri Moksha Amavasya) पितृ पक्ष का अंतिम दिन होता है, लेकिन इसके अगले दिन यानी शारदीय नवरात्रि (Sharadiya Navratri 2021) की प्रतिपदा तिथि पर भी मातामह श्राद्ध करने का विधान है।

उज्जैन. इस बार मातामह श्राद्ध श्राद्ध 7 अक्टूबर, गुरुवार को है। मातामह श्राद्ध, एक ऐसा श्राद्ध है जो एक पुत्री द्वारा अपने पिता व एक नाती द्वारा अपने नाना को तर्पण के रूप में किया जाता है। इस श्राद्ध को सुख शांति का प्रतीक माना जाता है। आगे जानिए इस श्राद्ध से जुड़ी खास बातें…

किस स्थिति में किया जाता है ये श्राद्ध?
धर्म ग्रंथों के अनुसार, यह श्राद्ध करने के लिए कुछ आवश्यक शर्तें हैं, अगर वे पूरी न हों तो यह श्राद्ध नहीं किया जाता। शर्त यह है कि मातामह श्राद्ध उसी औरत के पिता का निकाला जाता है जिसका पति व पुत्र जिंदा हो। अगर ऐसा नहीं है और दोनों में से किसी एक का निधन हो चुका है या है ही नहीं तो मातामह श्राद्ध का तर्पण नहीं किया जाता। यहां यह बात गौर करने लायक है कि एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में अपनी बेटी के घर का पानी भी नहीं पिता और इसे वर्जित माना गया है, लेकिन उसके मरने के बाद उसका तर्पण उसका दोहित्र कर सकता है और इसे शास्त्रोक्त माना गया है। परिजनों की स्मृति में तर्पण और श्राद्ध कर्म की तिथि अनुसार करने की परंपरा है, लेकिन कई बार तिथियां ना पता होने, दिवंगत के परिवार में संतान ना होने सहित कई समस्याएं होती है। संतान ना होने की स्थिति में मातामह श्राद्ध के दिन नाती तर्पण कर सकता है। परिस्थितियां ऐसी ही हों तो यह अंतिम विकल्प है। इस बारे में हिंदू धर्म ग्रंथ, धर्म सिंधु सहित मनुस्मृति (Manu Smriti) और गरुड़ पुराण (Garuda Purana) भी पुत्री तथा उसके पुत्र को पिंड दान आदि करने का अधिकार प्रदान करती है।

ये है मातामह श्राद्ध की विधि
- सुबह उठकर स्नान कर देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर से लीपकर व गंगाजल से पवित्र करें। घर के आंगन में रांगोली बनाएं।
- महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं। ब्राह्मण को न्योता देकर बुलाएं व पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि करवाएं।
- पितरों के निमित्त अग्नि में खीर अर्पित करें। गाय, कुत्ता, कौआ व अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास अलग से निकालें।
- ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं। वस्त्र, दक्षिणा दान करें। ब्राह्मण को घर के दरवाजे तक ससम्मान छोड़ कर आएं।

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