
उज्जैन. सोमवार और त्रयोदशी तिथि दोनों ही शिवजी को प्रिय हैं। पितृ पक्ष में ऐसा संयोग 4 अक्टूबर को बन रहा है। इस दिन पितरों के निमित्त दान व श्राद्ध करने से उनका कल्याण होता है और शिव पूजा करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि प्रदोष काल में भगवान शिव रजत भवन में नृत्य करते हैं और प्रसन्न मुद्रा में रहते हैं।
प्रदोष व्रत का महत्व (Pradosh Vrat 2021)
प्रदोष व्रत करने से बीमारियां दूर होती हैं और उम्र बढ़ती है। इस दिन व्रत और पूजा से सुहागनों की मनोकामना पूरी होती है और सुख-समृद्धि मिलती है। ये व्रत दुश्मनों पर जीत हासिल करने के लिए फलदायी माना गया है।
प्रदोष व्रत विधि (Pradosh Vrat 2021)
प्रदोष व्रत की पूजा सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है। इसे प्रदोष काल कहा जाता है। प्रदोष वाले दिन सूर्यास्त के समय स्नान कर शिव मूर्ति के सामने अथवा पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर के बैठें और हाथ में जल पुष्प फल और चावल लेकर "मम शिव प्रसाद प्राप्ति कामनया प्रदोष व्रतांगी भुतम् शिवपूजनं करिष्ये" ये संकल्प लेकर भस्म का तिलक और रुद्राक्ष की माला पहनकर शिवजी की पूजा करें। सोम प्रदोष का व्रत करने से हर तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कृष्णपक्ष में तो सोम प्रदोष का महत्व और भी ज्यादा होता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा के साथ-साथ पार्वती जी की पूजा भी होती है। महिलाएं मां पार्वती को लाल चुनरी और सुहाग का सामान चढ़ाएं।
सोम प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat 2021)
इस व्रत को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। इसी एक कथा के अनुसार एक ब्राह्मणी ने इस व्रत और पूजा के फल से विदर्भ के भटके हुए राजकुमार का दुख भगवान शिव की कृपा से दूर करने में सफलता पाई थी। साथ ही ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के प्रभाव से उसके दुख के दिन दूर हुए। अत: मान्यता है कि जिस तरह ब्राह्मणी के दुख दूर हुए वैसे ही भगवान शंकर अपने भक्तों के दिन फेरते हैं और सुख प्रदान करते हैं।
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