हिंदू धर्म में पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री व्रत किया जाता है। हर साल यह व्रत देश के कुछ हिस्सों में ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को तो कुछ हिस्सों में पूर्णिमा को किया जाता है।
उज्जैन. स्कंद पुराण और भविष्योत्तर पुराण में ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा पर ही इस व्रत को करने का विधान बताया गया है। इस बार वट सावित्री व्रत के लिए बहुत ही अच्छा संयोग बन रहा है। इस बार 24 जून, गुरुवार को वट सावित्री व्रत किया जाएगा। इस दिन तिथि, वार और नक्षत्र के संयोग से सर्वार्थसिद्धि योग बन रहा है। वहीं सूर्य-चंद्रमा की स्थिति से सिद्ध नाम का एक और शुभ योग भी रहेगा।
इस विधि से करें वट सावित्री व्रत
- इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ के जल से स्नान करना चाहिए। भगवान शिव-पार्वती की पूजा कर के उनके सामने सावित्री और वट वृक्ष की पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
- पूजा और संकल्प के बाद नैवेद्य बनाएं और मौसमी फल जुटाएं। पूजा सामग्री के साथ बरगद के पेड़ के नीचे पूजा शुरू करें।
- पूजा में मिट्टी का शिवलिंग बनाएं। पूजा की सुपारी को गौरी और गणेश मानकर पूजा करनी चाहिए। इनके साथ ही सावित्री की पूजा भी करें।
- पूजा होने के बाद बरगद में 1 लोटा जल सींचे। पूजा के बाद अपनी मनोकामना ध्यान में रखते हुए श्रद्धा अनुसार पेड़ की 11, 21 या 108 परिक्रमा करें। परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत भी बरगद पर लपेटना चाहिए।
यमराज ने वापस किए थे सत्यवान के प्राण
इस व्रत को रखने से पति पर आए संकट चले जाते हैं और आयु लंबी हो जाती है। यही नहीं अगर दांपत्य जीवन में कोई परेशानी चल रही हो तो वह भी इस व्रत के प्रताप से दूर हो जाते हैं। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए इस दिन वट यानी कि बरगद के पेड़ के नीचे पूजा-अर्चना करती हैं। इस दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुनने का विधान है। मान्यता है कि इस कथा को सुनने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री मृत्यु के देवता यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आई थी।