गुरु द्रोणाचार्य महाभारत के एक प्रमुख पात्र थे। महाभारत के आदि पर्व के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य देवताओं के गुरु बृहस्पति के अंशावतार थे। गुरु द्रोणाचार्य ने भगवान परशुराम से शिक्षा प्राप्त की थी।
उज्जैन. कुरुक्षेत्र के युद्ध में भीष्म के बाद कौरवों का सेनापति गुरु द्रोणाचार्य को ही बनाया गया था। उन्होंने ही कौरव और पांडवों को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी थी। पर क्या आप ये जानते हैं कि कौरवों और पांडवों से गुरु द्रोणाचार्य ने गुरुदक्षिणा में क्या मांगा था। आज हम आपको उसी से जुड़ी कथा बता रहे हैं-
- गुरु द्रोणाचार्य के पिता का नाम भरद्वाज था। पृषत नाम के एक राजा भरद्वाज मुनि के मित्र थे। उनके पुत्र का नाम द्रुपद था। वह भी भरद्वाज आश्रम में रहकर द्रोणाचार्य के साथ पढ़ाई करता था।
- द्रोण व द्रुपद अच्छे मित्र थे। एक दिन द्रुपद ने द्रोणाचार्य से कहा कि- जब मैं राजा बनूंगा, तब तुम मेरे साथ रहना। मेरा राज्य, संपत्ति और सुख सब पर तुम्हारा भी समान अधिकार होगा।
- जब राजा पृषत की मृत्यु हुई तो द्रुपद पांचाल देश का राजा बन गया। इधर द्रोणाचार्य अपने पिता के आश्रम में ही रहकर तपस्या करने लगे। उनका विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ।
- कृपी से उन्हें अश्वत्थामा नामक पराक्रमी पुत्र हुआ। एक दिन दूसरे ऋषिपुत्रों को देख अश्वत्थामा भी दूध पीने के लिए मचल गया और रोने लगा। लेकिन गाय न होने के कारण द्रोणाचार्य उसके लिए दूध का प्रबंध न कर पाए।
- जब द्रोणाचार्य को पता चला कि उनका मित्र द्रुपद राजा बन गया है तो वह बचपन में किए उसके वादे को ध्यान में रखकर उससे मिलने गए। वहां जाकर द्रोणाचार्य ने द्रुपद से कहा कि- मैं तुम्हारे बचपन का मित्र हूं। द्रोणाचार्य के मुख से ऐसी बात सुन राजा द्रुपद ने उन्हें बहुत भला-बुरा कहा।
- द्रुपद की ये बात द्रोणाचार्य को अच्छी नहीं लगी और वे किसी तरह द्रुपद से अपने अपमान का बदला लेने की बात सोचते हुए हस्तिनापुर आ गए। पितामह भीष्म ने उन्हें कौरव और पांडवों का गुरु नियुक्त कर दिया।
- जब कौरव व पांडवों की शिक्षा पूरी हो गई तब द्रोणाचार्य ने उनसे गुरुदक्षिणा ने राजा द्रुपद को बंदी बनाकर लाने को कहा। पहले कौरवों ने राजा द्रुपद पर आक्रमण कर उसे बंदी बनाने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए।
- बाद में पांडवों ने अर्जुन के पराक्रम से राजा द्रुपद को बंदी बना लिया और गुरु द्रोणाचार्य के पास लेकर आए। तब द्रोणाचार्य ने उसे आधा राज्य लौटा दिया और आधा अपने पास रख लिया।
- इस प्रकार राजा द्रुपद व द्रोणाचार्य एक समान हो गए। इस तरह गुरु द्रोणाचार्य ने राजा द्रुपद से अपने अपमान का बदला ले लिया।