Buddha Purnima 2022: ये है सिद्धार्थ के गौतम बुद्ध बनने की पूरी कहानी, इन घटनाओं ने बदल दिया उनका जीवन

हर साल वैशाख मास की पूर्णिमा पर बुद्ध पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 16 मई, सोमवार को है। कई ग्रंथों में महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार भी बताया गया है।
 

Manish Meharele | Published : May 15, 2022 5:53 AM IST / Updated: May 15 2022, 11:24 AM IST

उज्जैन. बुद्ध ने ही बौद्ध धर्म (Buddha Purnima 2022) की स्थापना की और लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। इसके बाद भारत सहित अन्य देश जैसे श्रीलंका, चीन, अफगानिस्तान आदि में बौद्ध धर्म फैलता गया। आज भी इन देशों में इसके प्रमाण देखे जा सकते हैं। गौतम बुद्ध जन्म से राजकुमार थे, लेकिन उनके जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं हुई, जिसके कारण उनका मन सांसारिक जीवन से उठकर संन्यास में रम गया। सालों तक तपस्या करने के बाद उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध कहलाए। आज हम आपको गौतम बुद्ध के जीवन की उन घटनाओं के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें देखकर उन्होंने संन्यास का मार्ग चुना…

ये दृश्य देखकर एक राजकुमार बन गया संत 
महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनके पिता लुंबिन के राजा शुद्धोधन था। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी सिद्धार्थ सांसारिक जीवन छोड़कर संन्यास ग्रहण करेंगे। ये सुनकर उनके पिता ने उन्हें महल के अंदर ही पाला-पौसा। इस तरह सिद्धार्थ का बचपन सुख-सुविधाओं में बीता। वे कभी महल के बाहर नहीं गए। मात्र 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह यशोधरा से हो गया। बाद में सिद्धार्थ की पत्नी यशोधरा ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम राहुल रखा गया। 
एक दिन जब राजकुमार सिद्धार्थ अपने रथ पर सवार होकर नगर की सैर करने निकले तो उन्हें एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। जिसकी कमर झुकी हुई थी और हाथ-पैर कांप रहे थे। वो ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। उन्होंने अपने सारथी से पूछा कि “ये आदमी ऐसा क्यों है?”
सारथी ने जवाब दिया कि “ये व्यक्ति बूढ़ा हो चुका है, इसलिए इसकी ऐसी दशा हुई है। एक दिन सब भी बूढ़े हो जाएंगे और हमारी भी ऐसी ही अवस्था हो जाएगी।” ये देखकर सिद्धार्थ को बहुत दुख हुआ।
थोड़ी आगे जाकर सिद्धार्थ को एक बीमार व्यक्ति दिखाई दिया, उसे सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी, सांस न ले पाने के कारण वो बुरी तरह से तड़प रहा था। सिद्धार्थ ने सारथी से फिर पूछा “इस व्यक्ति की हालत ऐसी क्यों है?”
सारथी ने कहा कि “हमारा शरीर नश्वर है। इसे इस तरह के रोग होते रहते हैं और एक दिन इन्हीं बीमारियों के कारण शरीर नष्ट हो जाता है। ऐसा सभी के साथ होता है।” 
थोड़ी और आगे जाने पर सिद्धार्थ ने एक शव देखा, जिसे चार लोग जलाने ले जा रहे थे। इसके बारे में भी सिद्धार्थ ने सारथी से पूछा तो उसने बताया कि “इस व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है। ये एक अटल सत्य है, जिसे कोई झुठला नहीं सकता।”
ये सभी घटनाएं देखकर सिद्धार्थ के मन में उथल-पुथल मच गई। इससे पहले उन्होंने इस तरह के दुखों को नहीं देखा था। थोड़ी और आगे सिद्धार्थ को एक संन्यासी दिखाई दिए। उनके चेहरे पर तेज और होठों पर मुस्कान थी जैसे उन्हें दुनिया के किसी दुख की परवाह न हो। 
सिद्धार्थ को समझ आ गया कि जीवन में दुखों का कोई अंत नहीं है। सिर्फ संन्यास ही है जो हमें जीवन जीने का सही तरीका बता सकता है। एक रात सिद्धार्थ रात में बिना किसी को बताए संन्यास मार्ग पर चले गए। कई सालों तक भटकने के बाद बोधगया (वर्तमान बिहार) में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें परम ज्ञान की प्राप्ति हुई। इस तरह सिद्धार्थ गौतम से वह महात्मा बुद्ध हो गए। 

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