सार

हर साल वैशाख मास की पूर्णिमा पर बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima 2022) का पर्व मनाया जाता है। इस बार बुद्ध पूर्णिमा 16 मई, सोमवार को है। बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है लेकिन इसको लेकर मतभेद है।

उज्जैन. महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था और वे एक राजकुमार थे। जब उन्हें ये अहसास हुआ कि जीवन और ये शरीर नश्वर है तो उन्होंने आध्यात्म की राह चुनी और संत बन गए। कई सालों तक तपस्या करने के बाद उन्हें बोधिगया में बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे बुद्ध कहलाए। हममें से अधिकांश लोगों ने विभिन्न मुद्राओं में बुद्ध की मूर्तियों को देखा होगा है। बुद्ध की इन सभी मुद्राओं का विशेष महत्व है। वैसे तो भगवान बुद्ध की कई मुद्राएं मानी जाती है, लेकिन इन सभी में एक मुद्रा ऐसी है, जिसका महत्व सबसे अधिक माना जाता है। आगे जानिए कौन-सी है वो मुद्रा…

बु्द्ध की पृथ्वी को स्पर्श करती मुद्रा
बुद्ध की इस प्रकार की प्रतिमा थाई मंदिरों में सबसे अधिक देखने को मिलती है। इस मुद्रा में बुद्ध को अपने बाएं हाथ को गोद में और दाहिने हाथ को दायें घुटने पर रखकर हथेली को अंदर की ओर रखते हुए जमीन की ओर इशारा करते हुए दर्शाया जाता है। इस मुद्रा को भूमिस्पर्श मुद्रा कहते हैं। 

क्या है इस मुद्रा का अर्थ?
महात्मा बुद्ध की इस मुद्रा को को पृथ्वी को छूना भी कहा जाता है। बुद्ध की इस मुद्रा के बारे में प्रचलित है तो जब उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई तब वे इसी अवस्था में थे। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें तो बुद्ध की ये मुद्रा सत्य व ज्ञान प्राप्ति के प्रति बुद्ध के समर्पण का प्रतीक है। इस मुद्रा से बुद्ध दावा करते हैं कि पृथ्वी उनके ज्ञान की साक्षी है। बुद्ध की इस मुद्रा की प्रतिमा को आप घर के केंद्र, मुख्य द्वार या फिर पूजाघर या किसी पवित्र स्थल पर लगा सकते हैं। इससे आपका तनाव कम होगा और घर में भी सुख-शांति बनी रहेगी।

ये हैं बुद्ध की अन्य  मुद्राएं 
महात्मा बुद्ध की कई मुद्राएं प्रचलित हैं। इनमें से भूमिस्पर्श मुद्रा को सबसे विशेष माना जाता है। बु्दध की अन्य मुद्राओं की जानकारी इस प्रकार है…

1. अभय मुद्रा: इस अवस्था में बुद्ध को दाहिने हाथ को उठाकर हथेली को बाहर की ओर दर्शाया जाता है, जो सुरक्षा, शांति, परोपकार और भय को दूर करने का प्रतिनिधित्व करती है।

2. ध्यान मुद्रा: इस मुद्रा में बुद्ध को दोनों हाथों को गोद में रखे हुए दर्शाया जाता है। ये स्थिरता का प्रतिनिधित्व करती है।

3. निर्वाण मुद्रा: यह प्रतिमा ऐतिहासिक बुद्ध को उनके पृथ्वी पर जीवन के अंतिम क्षणों को दर्शाती है। 

4. औषधि मुद्रा: तिब्बतियों द्वारा यह माना जाता है कि बुद्ध दुनिया के लोगों को औषधि का ज्ञान देने के लिए उत्तरदायी थे और उनकी यह मुद्रा आशीर्वाद देने का प्रतीक है।

5. शिक्षण मुद्रा: इस मुद्रा में बुद्ध के दोनों हाथों को छाती के स्तर पर रखा जाता है, अंगूठे के ऊपरी भाग और तर्जनी को मिलाकर एक चक्र बनाया जाता है, जबकि बाएं हाथ को हथेली से बाहर कर दिया जाता है।

6. चलने वाली मुद्रा: इस मुद्रा में बुद्ध का दाहिना हाथ बाहर की ओर उठा हुआ, शरीर के बाईं ओर बाएं हाथ लटका हुआ, जबकि दाहिना पैर जमीन से ऊपर उठा हुआ दर्शाया जाता है।

7. अवलोकन मुद्रा: बुद्ध की ये मुद्रा शांत संकल्प और धैर्यवान समझ को दर्शाती है। 

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