rishi panchami vidhi: ऋषि पंचमी पर की जाती है सप्तऋषियों की पूजा, क्या आप जानते हैं इनके बारे में?

Rishi Panchami 2022: इस बार ऋषि पंचमी का व्रत 1 सितंबर, गुरुवार को किया जाएगा। ये व्रत महिला प्रधान है। इस दिन महिलाएं सुबह एक खास प्रकार की वनस्पति सिर पर रखकर स्नान करती हैं। इस व्रत में सप्तऋषियों की पूजा भी की जाती है।
 

Manish Meharele | Published : Aug 31, 2022 10:36 AM IST

उज्जैन. हिंदू धर्म में ऋषि पूजन की परंपरा सदियों से चली आ रही है। कई विशेष मौकों पर ऋषियों की पूजा विशेष रूप से की जाती है। ऋषि पंचमी पर भी सप्त ऋषियों की पूजा की परंपरा है। ऋषि पचंमी (Rishi Panchami 2022) का व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को किया जाता है। इस बार ये तिथि 1 सितंबर, गुरुवार को है। सप्त ऋषियों का वर्णन अनेक धर्म ग्रंथों में मिलता है। हालांकि कुछ ग्रंथों में सप्त ऋषियों के संबंध में मतभेद भी हैं। अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग सप्त ऋषि बताए गए हैं। आज हम आपको उन सप्त ऋषियों के बारे में बता रहे हैं, जिनका वर्णन सबसे अधिक ग्रंथों में किया गया है। ये हैं वो सप्तऋषि…

ऋषि वशिष्ठ 
ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ के कुलगुरु और चारों पुत्र श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर पर दशरथ ने श्रीराम और लक्ष्मण को ऋषि विश्वामित्र के साथ राक्षसों का वध करने के लिए भेजा था। कुछ ग्रंथों में ऋषि वशिष्ठ को ब्रह्मा का पुत्र भी बताया है। रामायण में इनका वर्णन कई बार आया है।

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ऋषि विश्वामित्र
ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र एक राजा थे। विश्वामित्र ने घोर तपस्या कर ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त किया। इसके तपस्या के इंद्र आदि देवता भी घबरा गए थे। तब उन्होंने मेनका नाम की अप्सरा को इनकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा था। चक्रवर्ती राजा भरत की माता शकुंतला ऋषि विश्वामित्र की ही पुत्री थी।

ऋषि कण्व
इनका वर्णन महाभारत में मिलता है। इनके आश्रम में ही राज दुष्यंत और शकुंतला ने गंधर्व विवाह किया था। जब राजा दुष्यंत शकुंतला को भूल गए तो भरत का पालन-पोषण ऋषि कण्व ने ही किया। आगे जाकर भरत के नाम पर ही इस देश का नाम भारत पड़ा। सप्तऋषियों में इनका नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है।

ऋषि भारद्वाज 
सप्त ऋषियों में भारद्वाज मुनि का स्थान काफी ऊंचा है। वनवास के दौरान भगवान श्रीराम कुछ दिन भारद्वाज ऋषि के आश्रम में भी रूके थे। भारद्वाज ऋषि ने वेदों में कई मंत्र रचे हैं। उन्होंने भारद्वाज स्मृति और भारद्वाज संहिता की भी रचना की है। उनके चरित कई ग्रंथ आज भी पढ़े जाते हैं। इनके पिता देवगुरु बृहस्पति बताए गए हैं।

ऋषि अत्रि 
महर्षि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र बताए गए हैं। इनकी पत्नी का नाम अनुसूया है। इनका वर्णन वाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास दोनों की ही रामायण में मिलता है। वनवास के दौरान माता अनुसूया ने सीता को पतिव्रत धर्म का उपदेश दिया था। ये भगवान दत्तात्रेय, चंद्रमा और दुर्वासा के पिता भी हैं। 

ऋषि वामदेव 
ये भी सप्तऋषियों में से एक हैं। इन्होंने सामगान यानी संगीत की रचना की है। धर्म ग्रंथों में इन्हें गौतम ऋषि का पुत्र बताया गया है। भरत मुनि द्वारा रचित भरत नाट्य शास्त्र सामवेद से ही प्रेरित है। हजारों साल पहले रचे गए सामवेद में संगीत और वाद्य यंत्रों की संपूर्ण जानकारी मिलती है।

ऋषि शौनक 
प्राचीन समय में शौनक ऋषि ने 10 हजार विद्यार्थियों का गुरुकुल स्थापित किया और कुलपति बनने का सम्मान प्राप्त किया था। इनका वर्णन भी कई धर्म ग्रंथों में पढ़ने को मिलता है। इनसे जुड़ी एक मान्यता ये भी है कि राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने जब सर्पयज्ञ करवाया, तब ये ही प्रमुख यज्ञकर्ता थे।

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