Chhath Puja 2022: छठ पूजा बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस बार ये पूजा 28 से 31 अक्टूबर तक की जाएगी। इस पूजा में मुख्य रूप से भगवान सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा की जाती है।
उज्जैन. छठ पूजा (Chhath Puja 2022) का महापर्व 28 अक्टूबर से शुरू हो चुका है, ये उत्सव 31 अक्टूबर की सुबह तक मनाया जाएगा। वैसे तो ये पर्व पूरे देश सहित विदेशों में भी भारतवंशियों द्वारा मनाया जाता है, लेकिन इसका वैभव बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में अधिक देखा जाता है। छठ पूजा के दौरान भगवान सूर्यदेव के साथ-साथ छठी मैया की पूजा भी की जाती है। भगवान सूर्यदेव के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन छठी मैया के बारे में कम ही लोग जानते हैं। आज हम आपको बता रहे हैं, छठ पूजा की परंपरा कैसे शुरू हुई और कौन हैं छठी मैया…
कौन हैं छठी मैया? (Who is Chhathi Maiya)
धर्म शास्त्रों के अनुसार, षष्ठी देवी यानी छठी मैया प्रमुख मातृ शक्तियों का ही अंश स्वरूप है। मार्कण्डेयपुराण के अनुसार- स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु। प्रकृति के एक प्रधान अंश को देवसेना कहते हैं जो सबसे श्रेष्ठ मातृका (माता) मानी जाती है। ये समस्त लोकों के नवजात बच्चों की रक्षा करती हैं। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी को ही षष्ठी देवी कहा गया है-
षष्ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्ठी प्रकीर्तिता।
बालकाधिष्ठातृदेवी विष्णुमाया च बालदा।।
आयु:प्रदा च बालानां धात्री रक्षणकारिणी।
सततं शिशुपाश्र्वस्था योगेन सिद्धियोगिनी।।
(ब्रह्मवैवर्तपुराण, प्रकृतिखण्ड 43/4/6)
अर्थ- षष्ठी देवी नवजात शिशुओं की रक्षा करती हैं तथा उन्हें आरोग्य (अच्छी सेहत) व दीर्घायु (लंबी उम्र )प्रदान करती हैं। इन षष्ठी देवी का पूजन ही कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है।
ऐसे शुरू हुई छठ पूजा की परंपरा (This is how the tradition of Chhath Puja started)
- पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में स्वायम्भुव मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत नाम के एक राजा हुए, उनकी कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया, जिससे रानी को गर्भ ठहर गया, किंतु मृत पुत्र उत्पन्न हुआ।
- जब राजा प्रियवत उस मृत बालक को लेकर श्मशान गए तो अत्यधिक दुखी होने के कारण प्रियवत ने भी प्राण त्यागने का प्रयास किया। तभी वहां षष्ठी देवी प्रकट हुईं। राजा ने देवी को प्रणाम किया और उनका परिचय पूछा।
- तब देवी ने अपना परिचय दिया और कहा कि- तुम मेरा पूजन करो और अन्य लोगों से भी कराओ। ऐसा कहकर देवी षष्ठी ने उस बालक को उठा लिया और खेल-खेल में उस बालक को जीवित कर दिया।
- राजा प्रियवत ने उसी दिन घर जाकर बड़े उत्साह से नियमानुसार षष्ठी देवी की पूजा संपन्न की। चूंकि यह पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को की गई थी, अत: इस विधि को षष्ठी देवी/छठ देवी का व्रत होने लगा।
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