Parashuram Jayanti 2022: भगवान परशुराम को माना जाता है अमर, क्या वे आज भी जीवित हैं, क्या कहते हैं धर्म ग्रंथ?

भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए कई अवतार लिए। इनका छठा अवतार परशुराम के रूप में था। भगवान परशुराम से जुड़ी कई कथाएं धर्म ग्रंथों में मिलती है। परशुराम इतने क्रोधी थे कि अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए उन्होंने 21 बार धरती से क्षत्रियों का नाश कर दिया था।

Manish Meharele | Published : May 3, 2022 4:06 AM IST

उज्जैन. रामायण के अनुसार, जब भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर के दौरान शिव धनुष तोड़ा था तो क्रोधित होकर परशुराम भी वहां पहुंच गए थे, लेकिन श्रीराम को देखकर उन्हें आभास हो गया कि ये और कोई नहीं बल्कि स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं। महाभारत के अनुसार, श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र भी परशुरामजी ने ही दिया था। धर्म ग्रंथों में भगवान परशुराम को अष्टचींरजिवियों में से एक बताया गया है यानी वे आज भी अमर हैं। आज (3 मई, मंगलवार) परशुराम जयंती (Parashuram Jayanti 2022) के मौके पर जानिए उनसे जुड़ी खास बातें…

इस श्लोक में बताए गए हैं अष्ट चिरंजीवी
धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान परशुराम अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं यानी वे उन आठ में से एक हैं, जिन्हें अमर माना जाता है। इससे संबंधित श्लोक इस प्रकार है-
अश्वत्थामा बलिव्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अर्थ- अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि ये सभी अमर हैं। रोज सुबह इन 8 के नामों का जाप करने से भक्त को निरोगी शरीर और लंबी आयु मिलती है।


राम से कैसे बने परशुराम?
- बचपन में परशुराम के माता-पिता इन्हें राम कहकर ही बुलाते थे। जब  वे बड़े हुए तो उन्होंने पिता से वेदों की शिक्षा ली। इसके बाद उनके मन में शस्त्र विद्या सीखने की इच्छा हुआ। तब महर्षि जमदग्रि ने उन्हें भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करने को कहा। 
- पिता के कहने पर उन्होंने ऐसा ही किया। उसी दौरान असुरों से त्रस्त देवता शिवजी के पास पहुंचे और असुरों से मुक्ति दिलाने का निवेदन किया। तब शिवजी ने तपस्या कर रहे राम को असुरों का अंत करने को कहा। 
- राम ने शिवजी के आदेश पर अपने साधारण शस्त्रों से ही असुरों का नाश कर दिया। उनके पराक्रम को देखकर भगवान शिव ने उन्हें कई दिव्यास्त्र प्रदान किए। उन्हीं में से एक एक परशु (फरसा) भी था। यह अस्त्र राम को बहुत प्रिय था। इसे प्राप्त करते ही राम का नाम परशुराम हो गया।
 
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