सार

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को परशुराम जयंती का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्म हुआ था। इस दिन पूरे देश में ये पर्व बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।

उज्जैन. भगवान परशुराम को अष्टचिरंजीवियों में से एक माना जाता है, यानी ऐसी  मान्यता है कि है भगवान विष्णु के ये अवतार आज भी जीवित हैं। परशुरामजी जन्म से तो ब्राह्मण थे लेकिन उनमें क्षत्रियों के गुण थे। अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए उन्होंने 17  बार धरती को क्षत्रियों से विहिन कर दिया था। ब्राह्मण होकर भी परशुराम इतने क्रोधी क्यों थे, इसका रकारण उनके जन्म से जुड़ा है और बहुत कम लोग इसके बारे में जानते हैं। आगे जानिए भगवान परशुराम के जन्म से जुड़ी कथा… 

ऐसा हुआ भगवान परशुराम का जन्म
- पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि भृगु के पुत्र ऋचिक का विवाह राजा गाधि की पुत्री सत्यवती से हुआ था। सत्यवती अपने पिता की एक ही संतान थी। विवाह के बाद सत्यवती ने महर्षि भृगु से अपने व अपनी माता के लिए योग्य पुत्र के लिए प्रार्थना की। 
- महर्षि भृगु ने सत्यवती को क्षत्रिय और ब्राह्मण गुणों से युक्त दो फल दिए और एक स्वयं और दूसरा अपनी माता को देने को कहा। भूल से सत्यवती ने अपनी माता को ब्राह्मण गुणों से युक्त फल खिला दिया और स्वयं ने क्षत्रिय गुणों से युक्त फल खा लिया। 
- ये बात जब महर्षि भृगु को बता चली तो उन्होंने कहा कि “तुम्हारी गलती के कारण तेरा पुत्र ब्राह्मण होने पर भी क्षत्रिय गुणों वाला रहेगा और तेरी माता का पुत्र क्षत्रिय होने पर भी ब्राह्मणों की तरह आचरण करेगा।” 
 - तब सत्यवती ने महर्षि भृगु से प्रार्थना की कि “मेरा पुत्र क्षत्रिय गुणों वाला न हो भले ही मेरा पौत्र (पुत्र का पुत्र) ऐसा हो।” 
- कुछ समय बाद जमदग्रि मुनि ने सत्यवती के गर्भ से जन्म लिया। इनका विवाह रेणुका से हुआ। परशुराम मुनि जमदग्रि के चौथे पुत्र थए और उनका आचरण क्षत्रियों के समान था।

इस विधि से करें भगवान परशुराम की पूजा
तृतीया तिथि की सुबह पवित्र नदी में स्नान करें। ऐसा संभव न हो तो थोड़ा सा गंगाजल पानी में मिलाकर घर पर ही स्नान कर सकते हैं। इसके बाद व्रत करने का संकल्प लें। भगवान परशुराम की प्रतिमा या चित्र एक साफ स्थान पर स्थापित करें। धूप-दीप जलाएं। पंचोपचार पूजा करें यानी चावल, अबीर, गुलाल आदि चीजें चढ़ाएं। इसके बाद भगवान को भोग लगाएं। भगवान परशुराम के सामने अपनी इच्छा प्रकट करें और अंत में आरती कर प्रसाद लोगों में बांट दें। इस दिन व्रत करने वाले लोगों को किसी तरह का कोई अनाज नहीं खाना चाहिए। फलाहार कर सकते हैं।

ये हैं शुभ मुहूर्त
तृतीया तिथि 3 मई, मंगलवार की सुबह 05:19 से शुरू होगी, जो अगले दिन यानी 4 मई, बुधवार की सुबह 07:33 तक रहेगी। तृतीया तिथि दो दिन सूर्योदयकालीन रहेगी, लेकिन पर्वकाल यानी स्नान,दान आदि कार्य 3 मई, मंगलवार को करना ही श्रेष्ठ रहेगा। इसलिए भगवान परशुराम की पूजा इसी दिन करना शुभ रहेगा। इस दिन रोहिणी नक्षत्र होने से मातंग नाम का शुभ योग भी इस दिन बन रहा है।

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