हर साल 13-14 अप्रैल को बैसाखी उत्सव (Baisakhi 2022) मनाया जाता है। मुख्य तौर पर ये पंजाब में मनाया जाने वाला पर्व है। हरियाणा (Haryana) और उत्तर भारत के क्षेत्रों में भी ये त्योहार मनाया जाता है। इस दिन पंजाब (Punjab) व अन्य राज्यों के किसान फसल पकने की खुशी में एक जगह इकट्ठा होकर ये त्योहार मनाते हैं।
उज्जैन. इस बार 14 अप्रैल को बैसाखी उत्सव मनाया जाएगा। इस मौके पर पंजाब का परंपरागत गीत और नृत्य किया जाता है और नई फसल के लिए भगवान को धन्यवाद दिया जाता है। इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं, एक दूसरे को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हैं और खुशियां मनाते हैं। कुल मिलाकर ये पर्व नाचने-गाने और नई फसल की खुशियां मनाने से जुड़ा है। इसी दिन से पंजाबी नववर्ष का आरंभ भी माना जाता है। आगे जानिए इस पर्व से जुड़ी खास बातें…
गुरु गोविंदसिंह (Guru Gobind Singh) ने की थी खालसा पंथ (Khalsa Panth) की स्थापना
वैसे तो बैसाखी का पर्व नई फसल आने की खुशी में मनाया जाता है, लेकिन एक बात और इस दिन का खास बनाती है वो ये है कि सन 1699 में इसी दिन सिखों के दसवें गुरु गोविंदसिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य हिंदुओं की रक्षा करना और अन्य धर्मों के अन्याय को रोकना था। बैसाखी के मौके पर गुरुद्वारों की विशेष साज-सज्जा की जाती है और गुरुवाणी का आयोजन किया जाता है। महिलाएं और पुरुष पारंपरिक गिद्दा और भांगड़ा नृत्य करते हैं।
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क्यों कहते हैं बैसाखी?
वैशाख माह में मनाए जाने के कारण इस पर्व का नाम बैसाखी रखा गया है। ज्योतिषिय दृष्टिकोण से देखें तो ये सौर वर्ष का पहला दिन होता है। क्योंकि इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है जो राशि क्रम की पहली राशि है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान की परंपरा भी है। हरिद्वार के आस-पास के क्षेत्रों में बैसाखी पर मेले का आयोजन भी किया जाता है। बैसाखी परंपरागत रूप से सिख नववर्ष रहा है। इस दिन सिख समुदाय नगर कीर्तन नामक जुलूस का आयोजन करते हैं। पंच प्यारे इस जुलूस का नेतृत्व करते हैं।
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अन्य क्षेत्रों में दूसरे नामों से मनाया जाता है ये पर्व
केरल में इस मौके पर विशु नामक त्योहार मनाया जाता है। उत्तराखंड में लोग इस दिन पवित्र नदी में डुबकी लगाते हैं। बोहाग बिहू या रंगली बिहू 13 अप्रैल को असमिया नव वर्ष की शुरुआत के रूप में मनाते हैं। इस तरह वैशाखी का पर्व अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न परंपराओं के साथ मनाया जाता है।
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