तिरुवनंतपुरम का ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर एक बार फिर सुर्खियों में है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मंदिर के प्रशासन और देखरेख की जिम्मेदारी पूरी तरह से त्रावणकोर के पूर्व शाही परिवार को सौंप दी है।
उज्जैन. कोर्ट ने केरल उच्च न्यायालय के 31 जनवरी 2011 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें राज्य सरकार से श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का नियंत्रण लेने के लिए ट्रस्ट गठित करने को कहा गया था। जानिए क्या है इस मंदिर का इतिहास और मान्यताएं...
क्या है इस मंदिर का इतिहास?
श्री पद्मनाभ मंदिर को 6वीं शताब्दी में त्रावणकोर के राजाओं ने बनवाया था। 1750 में मार्तंड वर्मा ने खुद को भगवान का सेवक यानी पद्मनाभ दास बताते हुए अपना जीवन और संपत्ति उन्हें सौंप दी। 1949 तक त्रावणकोर के राजाओं ने केरल में राज किया। त्रावणकोर के शासकों ने शासन को दैवीय स्वीकृति दिलाने के लिए अपना राज्य भगवान को समर्पित कर दिया था।
श्रापित है सातवां तहखाना
2011 में जब मामला अदालतों में पहुंचा तो इसके तहखाने खोले गए। कल्लार (वॉल्ट) ए खोला गया तो उसमें एक लाख करोड़ रुपए के बेशकीमती जेवरात, मूर्तियां मिली हैं। कल्लार (वॉल्ट) बी नहीं खोला गया है। कहा जाता है कि मंदिर के बंद तहखाने के सातवें दरवाजे पर नाग का चिह्न बना हुआ है। बंद तहखाना जो कि इस मंदिर का सातवां द्वार भी कहा जाता है, सिर्फ कुछ मंत्रों के उच्चारण से ही खोला जा सकता है।अगर बलपूर्वक इस दरवाजे को खोला गया तो कुछ अनहोनी हो सकती है, इसी कारण इस दरवाजे को अब तक खोला नहीं गया है। शाही परिवार के सदस्यों का भी कहना है कि वह तहखाना श्रापित है। यदि उसे खोला गया तो वह अनिष्ट को न्योता देगा।
नाग के नाम पर है शहर का नाम
अनंत शेषनाग की ही एक नाम है। उन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम तिरुअनंतपुरम रखा गया है। मंदिर में भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति स्थित है। इस प्रतिमा में भगवान श्रीहरि शेषनाग पर शयन मुद्रा में दर्शन दे रहे हैं। मंदिर गोपुरम द्रविड़ शैली में बना हुआ है, इस वजह से ये देखने में बहुत ही आर्कषक है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला का अदभुत उदाहरण है। मंदिर परिसर बहुत विशाल है, जो कि सात मंजिला ऊंचा है। यहां गोपुरम कलाकृतियों बनाई गई हैं। मंदिर के पास ही तालाब भी है, जिसे 'पद्मतीर्थ कुलम कहा जाता है।