पुरुष न हो तो महिलाएं भी कर सकती हैं पितरों का श्राद्ध, जानिए क्या कहते हैं धर्म ग्रंथ

परिवार में पुरुषों के न होने पर महिलाएं भी श्राद्धकर्म कर सकती हैं। इस बारे में सिंधु ग्रंथ के साथ ही मनुस्मृति, मार्कंडेय पुराण और गरुड़ पुराण में भी बताया गया है कि महिलाओं को तर्पण और पिंड दान करने का अधिकार है।

Asianet News Hindi | Published : Sep 11, 2020 3:32 AM IST

उज्जैन. वाल्मिकी रामायण में भी बताया गया है कि सीताजी ने राजा दशरथ के लिए पिंडदान किया था। काशी के ज्योतिषाचार्य और धर्मग्रंथों के जानकार पं. गणेश मिश्र के मुताबिक श्राद्ध करने की परंपरा जीवित रहे और लोग अपने पितरों को नहीं भूलें इसलिए इस प्रकार की व्यवस्था बनाई गई है।

मार्कंडेय पुराण: बिना मंत्रों के ही श्राद्ध कर सकती है पत्नी
मार्कंडेय पुराण में कहा गया है कि अगर किसी का पुत्र न हो तो पत्नी ही बिना मंत्रों के श्राद्ध कर्म कर सकती है। पत्नी न हो तो कुल के किसी भी व्यक्ति द्वारा श्राद्ध किया जा सकता है। इसके अलावा अन्य ग्रंथों में बताया गया है कि परिवार और कुल में कोई पुरुष न हो तो सास का पिंडदान बहू भी कर सकती है। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि अगर घर में कोई बुजुर्ग महिला है तो युवा महिला से पहले श्राद्ध कर्म करने का अधिकार उसका होगा।

विवाहित महिलाओं को है श्राद्ध करने का अधिकार
पं. मिश्र का कहना है कि महिलाएं श्राद्ध के लिए सफेद या पीले कपड़े पहन सकती हैं। केवल विवाहित महिलाओं को ही श्राद्ध करने का अधिकार है। श्राद्ध करते वक्त महिलाओं को कुश और जल के साथ तर्पण नहीं करना चाहिए। साथ ही काले तिल से भी तर्पण न करें। ऐसा करने का महिलाओं को अधिकार नहीं है।

गरुड़ पुराण: बहू या पत्नी कर सकती है श्राद्ध
पुत्र या पति के नहीं होने पर कौन श्राद्ध कर सकता है इस बारे में गरुड़ पुराण के ग्यारहवें अध्याय में बताया गया है। उसमें कहा गया है कि ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र के अभाव में बहू, पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है। इसमें ज्येष्ठ पुत्री या एकमात्र पुत्री भी शामिल है। अगर पत्नी भी जीवित न हो तो सगा भाई अथवा भतीजा, भानजा, नाती, पोता आदि कोई भी श्राद्ध कर सकता है। इन सबके अभाव में शिष्य, मित्र, कोई भी रिश्तेदार अथवा कुल पुरोहित मृतक का श्राद्ध कर सकता है। इस प्रकार परिवार के पुरुष सदस्य के अभाव में कोई भी महिला सदस्य व्रत लेकर पितरों का श्राद्ध, तर्पण कर सकती है।

वाल्मीकि रामायण: सीताजी ने दिया राजा दशरथ को पिंडदान
वनवास के दौरान जब श्रीराम लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष के दौरान गया पहुंचे तो श्राद्ध के लिए कुछ सामग्री लेने गए। उसी दौरान माता सीता को राजा दशरथ के दर्शन हुए, जो उनसे पिंड दान की कामना कर रहे थे। इसके बाद माता सीता ने फल्गु नदी, वटवृक्ष, केतकी फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर फल्गु नदी के किनारे श्री दशरथ जी महाराज का पिंडदान कर दिया। इससे राजा दशरथ की आत्म प्रसन्न हुई और सीताजी को आशीर्वाद दिया।

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