world earth day 2022: कौन था धरती का पहला राजा, पौराणिक ग्रंथों में किसे कहा गया है पृथ्वी का पिता?

हर साल 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस (world earth day 2022) मनाया जाता है। वैश्विक स्तर पर 22 अप्रैल 1970 को पहली बार मनाया गया था तभी से हर साल 22 अप्रैल को यह दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया। इसकी शुरूआथ अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन (US Senator Gerald Nelson) ने की थी। 93 देश इसी दिन विश्व पृथ्वी दिवस मनाते हैं।

 

उज्जैन. हिंदू धर्म में पृथ्वी को माता का स्थान दिया गया है। कई विशेष अवसरों पर धरती की पूजा भी की जाती है यहां तक कि सुबह धरती पर पैर रखने से पहले एक खास मंत्र बोलकर उससे क्षमा भी मांगी जाती है। पौराणिक ग्रंथों में भी पृथ्वी से जुड़ी कई कथाएं बताई गई हैं। राजा पृथु की कथा भी इनमें से एक है। पृथ्वी को राजा पृथु की पुत्री भी कहा गया है। राजा पृथु को भगवान विष्णु का अवतार भी कहा जाता है। आगे जानिए क्या है ये पौराणिक कथा…

जब भगवान विष्णु ने लिया पृथु के रूप में अवतार
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान वराह ने पृथ्वी को समुद्र से निकाला तो ये धरती काफी समय तक उबड़-खाबड़ रही। इस पर कृषि का कार्य नहीं किया जाता था। तब त्रेतायुग के आरंभ में पृथु का जन्म हुआ, उनके पिता का नाम वेन था। उनके शासनकाल में शासन व्यवस्था बिल्कुल अव्यवस्थित थी। ऋषि मुनि आदि उनके व्यवहार से दुखी थे।
तब ऋषि-मुनियों ने एक कुशा को अभिमंत्रित कर वेन का वध कर दिया और उनकी भुजा का मंथन किया, जिसमें से पहले एक काला पुरुष प्रकट हुआ, जिसे केवट कहा गया। इसके बाद पृथु का जन्म हुआ। पृथु स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे। ऋषि मुनियों ने उन्हें धरती का पहला राजा स्वीकार किया। 
उस समय वेन के कुशसान के कारण धरती में अनाज उत्पन्न होना बंद हो गया था और किसी भी तरह को कोई वनस्पति भी नहीं उगती थी। तब राजा पृथु ने शासन व्यवस्था को कर्म प्रधान बनाया और लोगों को खेती के लिए प्रेरित किया। उस समय नदी, तालाब आदि नहीं थे। 
राजा पृथु ने परिश्रमपूर्वक धरती को समतल किया, नदी, तालाब आदि के लिए स्थान सुनिश्चित किए और लोगों को खेती के लिए प्रेरित किया। राजा पृथु ने ही सामाजिक व्यवस्था की आधारशीला रखी। पृथु ने धरती को अपनी पुत्री रूप में स्वीकार किया और इसका नाम पृथ्वी रखा। 
इस तरह संसार में कृषि एवं सामाजिक व्यवस्था की शुरूआत हुई। राज बनने के बाद पृथु ने धर्म पूर्वक, बिना किसी भेद-भाव के जनता की सेवा का वचन लिया। शतपथ ब्राह्मण नामक ग्रंथ में इस बात का उल्लेख किया गया है।

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