शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि को मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस बार 17 अक्टूबर, शनिवार को प्रतिपदा तिथि है।
उज्जैन. मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा। मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। इनकी पूजन विधि इस प्रकार है-
इस विधि से करें देवी शैलपुत्री की पूजा
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
अर्थात- देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए।
पहले दिन शैलपुत्री की ही पूजा क्यों?
नवरात्रि के 9 दिन भक्ति और साधना के लिए बहुत पवित्र माने गए हैं। इसके पहले दिन शैलपुत्री की पूजा की जाती है। शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं। हिमालय पर्वतों का राजा है। वह अडिग है, उसे कोई हिला नहीं सकता। जब हम भक्ति का रास्ता चुनते हैं तो हमारे मन में भी भगवान के लिए इसी तरह का अडिग विश्वास होना चाहिए, तभी हम अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं। यही कारण है कि नवरात्रि के पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
17 अक्टूबर के शुभ मुहूर्त
शुभ - सुबह 8:00 से 9:30 तक
चर - दोपहर 12:30 से 2:00 तक
लाभ - दोपहर 2:00 से 3:30 तक
अमृत- दोपहर 3:30 से शाम 5:00 तक