महाभारत की कथा जितनी अनोखी है उतनी ही विचित्र है। आज हम आपको कौरव-पांडवों का युद्ध समाप्त होने के बाद की कहानी बता रहे हैं। ये बात तो सभी जानते हैं कि कौरव और पांडवों में जब युद्ध हुआ तो इसमें करोड़ों योद्धा मारे गए।
उज्जैन. कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद पांडवों के पास अश्वमेध यज्ञ करने जितना भी धन भी नहीं बचा। तब महर्षि वेदव्यास के कहने पर पांडव हिमालय से धन लेकर आए। आगे जानिए क्या है ये पूरा प्रसंग…
महर्षि वेदव्यास ने बताया था कहां है खजाना
हस्तिनापुर का राजा बनने के बाद एक दिन युधिष्ठिर से मिलने महर्षि वेदव्यास आए। उन्होंने युधिष्ठिर से कहा कि अपने कुल के बंधुओं की शांति के लिए तुम्हे अश्वमेध यज्ञ करना चाहिए। महर्षि वेदव्यास की बात सुनकर युधिष्ठिर ने कहा कि- इस समय मेरे पास दक्षिणा में दान देने जितना भी धन नहीं है तो मैं इतना बड़ा यज्ञ कैसे कर सकता हूं।
तब महर्षि वेदव्यास ने बताया कि- पूर्व काल में इस संपूर्ण पृथ्वी के राजा मरुत्त थे, उन्होंने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था। उस यज्ञ में उन्होंने ब्राह्मणों को बहुत-सा सोना दिया था। बहुत अधिक होने के कारण ब्राह्मण वह सोना अपने साथ नहीं ले जा पाए। वह सोना आज भी हिमालय पर है। उस धन से अश्वमेध यज्ञ किया जा सकता है। युधिष्ठिर ने ऐसा ही करने का निर्णय लिया।
हिमालय से कैसे इतना सोना लेकर आए पांडव
महर्षि वेदव्यास के कहने पर पांडव अपनी सेना लेकर हिमालय गए। सबसे पहले उन्होंने भगवान शिव और उसके बाद धन के स्वामी कुबेर की पूजा की और इसके बाद खुदाई करवाई। पांडवों ने हिमालय से राजा मरुत्त का धन प्राप्त कर लिया। करोड़ों घोड़े, हाथी, ऊंट और रथों से पांडव वह सोना लेकर हस्तिनापुर लेकर आए। इसके बाद पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ किया।