Bhishm Dwadashi 2024 Date: कब है भीष्म द्वादशी 20 या 21 फरवरी को? जानें सही डेट, पूजा विधि, मुहूर्त और महत्व

Bhishm Dwadashi 2024: भीष्म पितामाह महाभारत के प्रमुख पात्र थे। ग्रंथों के अनुसार, युद्ध समाप्त होने के बाद माघ मास में इन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया था। इस तिथि पर भीष्म पितामाह के लिए तर्पण-पिंडदान आदि किया जाता है।

 

उज्जैन. महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामाह को इच्छा मृत्यु का वरदान था। इसलिए अर्जुन के सैकड़ों तीर लगने के बाद भी काफी समय तक जीवित रहे। जब उन्होंने देख लिया कि हस्तिनापुर अब सुरक्षित हाथों में है, तब उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया। उस दिन माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि थी। इसी मास की द्वादशी तिथि को उनकी आत्मा की शांति लिए पांडवों ने तर्पण-पिंडदान आदि किया था। आज ये तिथि भीष्म द्वादशी के नाम से जानी जाती है। इस तिथि पर भीष्म पितामाह की आत्मा की शांति के लिए तर्पण-पिंडदान आदि किया जाता है। आगे जानिए इस बार कब है भीष्म द्वादशी…

कब है भीष्म द्वादशी 2024? ( Kab Hai Bhishm Dwadashi 2024)
पंचांग के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 20 फरवरी, मंगलवार की सुबह 09:55 से 21 फरवरी, बुधवार की सुबह 11:27 तक रहेगी। चूंकि द्वादशी तिथि का सूर्योदय 21 फरवरी को होगा, इसलिए इसी दिन भीष्म द्वादशी का व्रत किया जाएगा। इस दिन आयुष्मान और सौभाग्य नाम के 2 शुभ योग दिन रहेंगे।

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इस विधि से करें भीष्म द्वादशी का व्रत (Bhishm Dwadashi 2024 Puja Vidhi)
- 21 फरवरी, बुधवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद हाथ में जल-चावल लेकर भीष्म द्वादशी व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- इसके बाद शुभ मुहूर्त में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करें। फल, पंचामृत, सुपारी, पान, दूर्वा आदि चीजें चढ़ाएं।
- कुछ ग्रंथों में भीष्म द्वादशी को तिल द्वादशी भी कहा गया है। इसलिए इस दिन पूजा में भगवान को तिल जरूर चढ़ाएं।
- घर में बने पकवानों का भगवान को भोग लगाएं। देवी लक्ष्मी समेत अन्य देवों की स्तुति करें। ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें।
- इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने और जरूरतमंदों को दान करने से सुख-सौभाग्य, धन-संतान की प्राप्ति होती है।
- इसके बाद किसी नदी के तट पर या घर पर ही भीष्म पितामाह के निमित्त तर्पण-पिंडदान आदि करें।
- भीष्म द्वादशी पर इसी विध से पूजा-व्रत आदि करने से आपको शुभ फल प्राप्त होंगे और घर में सुख-समृद्धि बनी रहेगी।

जानें भीष्म द्वादशी का महत्व (Significance of Bhishma Dwadashi)
- महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामाह की मृत्यु माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को हुई थी और उनका उत्तर कार्य यानी पिंडदान-तर्पण आदि माघ शुक्ल द्वादशी तिथि को किया गया था। इस तिथि को भीष्म द्वादशी कहते है।
- हर साल भीष्म द्वादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करने और भीष्म पितामाह के निर्मित तर्पण-पिंडदान करने की परंपरा है। ऐसा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा सुख व समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- इस दिन उपवास के दौरान ऊं नमो नारायणाय नम: आदि नामों से भगवान नारायण का स्मरण करना चाहिए। ऐसा करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।


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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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