यही हाल रहा तो मिडिल क्लास के लिए घर खरीदने से कम नहीं होगा कार लेने का सपना, ये है वजह

स्मॉल बजट कारों की कैटेगरी में इस वक्त सिर्फ ऑल्टो या एस प्रेसो जैसी कारें ही बची हैं। ऑटोमोबाइल कंपनियां भी अब ऐसी कारें लॉन्च नहीं कर रही हैं और ना ही भविष्य में उनकी ऐसी कोई प्लानिंग ही है। इस वजह से ऐसी कारें मार्केट से गायब हो रही हैं।

Satyam Bhardwaj | Published : Jan 21, 2023 4:28 AM IST

ऑटो डेस्क : क्या मिडिल क्लास के लिए कार खरीदना सपने जैसा हो जाएगा? मार्केट का हाल तो कम से कम इसी ओर इशारा कर रहा है। धीरे-धीरे स्मॉल बजट कारें (Small Budget Cars) मार्केट से गायब हो रही हैं. एक या दो कारों को छोड़ दें तो इस सेगमेंट को पूरा करने वाली कारें अब कम ही बची हैं। ऑटो एक्सपो 2023 (Auto Expo 2023) में भी जितनी भी कारें लॉन्च या शोकेस की गईं, उनमें छोटी कारें गायब ही रहीं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण महंगाई को माना जा रहा है लेकिन आइए जानते हैं इसके पीछे की इनसाइड स्टोरी..

स्मॉल बजट कार क्या होती हैं

ऐसी कारें जिनकी कीमत ऑन रोड 5 लाख रुपए तक होती हैं, वे स्मॉल बजट कार कहलाती हैं. वर्तमान की बात करें तो इस कैटेगरी में ऑल्टो या एस प्रेसो जैसी कारें ही बची हैं। ऑटोमोबाइल कंपनियां भी अब ऐसी कारें लॉन्च नहीं कर रही हैं और ना ही भविष्य में उनकी ऐसी कोई प्लानिंग दिख रही हैं। इसका मतलब यह है कि मिडिल क्लास फैमिली अगर बाइक से अपग्रेड कर कार खरीदने का सपना देखता है तो वह महंगाई की बोझ के नीचे अपने सपनों को कुचलते हुए देख सकता है। उसकी बाइंग कैपेसिटी इसकी परमिशन शायद ही दे। मारुति की सेल देखकर आप इसका अंदाजा लगा सकते हैं. दिसंबर, 2021 के मुकाबले 2022 तक इसकी बिक्री में 40 प्रतिशत की गिरावट आई है।

इन कारों की बढ़ी मांग

अब भारतीय मार्केट में ज्यादातर एसयूवी सेगमेंट की डिमांड बढ़ गई है। सेडान लोगों की पसंद बना हुआ है। ज्यादा कंफर्ट और ज्यादा सिटिंग कैपेसिटी के चलते कार कंपनियों का फोकस इन्हीं दो सेगमेंट पर आकर टिक गया है। कंपनियों का पूरा फोकस हैचबैक पर है। इसका कारण है यूथ को यह पसंद आ रही है और सिटी राइड के लिए भी फेवरेट बन रही है।

इसलिए गायब हो रही छोटी कारें

दरअसल, कार मैन्युफैक्चरिंग की लागत तेजी से बढ़ रही है। एयर बैग और पॉल्यूशन नॉर्म्स जैसे नियमों के चलते कार को बनाने की लागत ज्यादा आ रही है। इस वजह से छोटी बजट की कारों को बनाना और उन्हें सेल करना कंपनियों के लिए कठिन काम है। यही कारण है कि कंपनियां सिर्फ उन कारों पर अपना पैसा लगाना चाहती हैं, जिन्हें पसंद किया जा रहा है और उन पर पैसा लगाने से लोगों को भी परेशानी नहीं हो रही है।

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