जब रबर के टायरों का निर्माण शुरू हुआ, तब यह सफेद रंग में रंगा था। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस रबर से उसे बनाया जा रहा था, उसका रंग सफेद था। मगर यह टिकाऊ नहीं था और कमजोर साबित हुआ।
ऑटो डेस्क। कुछ चीजें हम लोग अक्सर देखते हैं, मगर उन पर गौर नहीं करते, जबकि उनसे जुड़े बहुत से सवाल मन में हलचल मचाते रहते हैं। जी हां, फिलहाल हम जिस चीज के बारे में बात कर रहे हैं, वो टायर है। अब आप कहेंगे, इसमें नया क्या है और गौर करने वाली बात आखिर क्यों है। दरअसल, टायर पर बात उसके रंग की वजह से। कई बार दिमाग में सवाल आया कि टायर का रंग काला ही क्यों है, कुछ और क्यों नहीं।
यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि टायर का रंग हमेशा से काला नहीं था। जब यह पहली बार अस्तित्व में आया तो इसका रंग काला नहीं होकर सफेद था। टायर सबसे पहले सन 1800 में अस्तित्व में आया। यह फ्रेंच शब्द है टायरर और इसका मतलब होता है खींचने वाला। आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि टायर सबसे पहले रबर के नहीं थे बल्कि, वह चमड़े, फिर लोहा और फिर लकड़ी का बना। बाद में यह मौजूदा स्वरूप में आया, रबर वाला।
सफेद टायर ज्यादा टिकाऊ नहीं थे और कमजोर साबित हुए
करीब सवा सौ साल पहले जब रबर के टायरों का निर्माण शुरू हुआ, तब यह सफेद रंग में रंगा था। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस रबर से उसे बनाया जा रहा था, उसका रंग सफेद था। मगर यह टिकाऊ नहीं था और कमजोर साबित हुआ। इसके बाद रबर में कॉर्बन ब्लैक मटेरियल मिलाया गया। इसके बाद रंग बदल गया और यह काला हो गया। साथ ही इसकी ताकत और क्षमता भी पहले के मुकाबले कई गुना बढ़ गई।
ब्लैक कॉर्बन मिलने से टायर की क्षमता और मजबूती बढ़ गई
जब यह विभिन्न परीक्षणों में सफल हो गया, तो इसका इस्तेमाल सभी गाड़ियों में किया जाने लगा। यह हर तरह की सड़क के लिए बेहतर साबित हुआ। लंबे समय चला और टिकाऊ बना रहा। गरम सतह हो या फिर ठंडी, गीली सड़क हो या सूखी, सभी जगह इसकी ग्रिप अच्छी बनी रही और यह हर मौसम में अपनी बेहतर परफॉरमेंस पूरी क्षमता के साथ देता रहा। इसलिए यह रंग सभी वाहन निर्माताओं की पसंद बना और सभी गाड़ियों में इसी कॉर्बन ब्लैक टायर का इस्तेमाल होने लगा, जो आज तक जारी है।
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