एक वोट की कीमत: 5 साल पहले इस सीट पर नहीं चला लालू-नीतीश का जादू, सिर्फ 708 वोटों से हुई थी हार

बिहार की बनमनखी सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। 2015 के चुनाव में बनमनखी सीट महागठबंधन में आरजेडी के खाते में थी। 

Asianet News Hindi | Published : Oct 12, 2020 1:40 PM IST / Updated: Oct 14 2020, 05:18 PM IST

पटना/नई दिल्ली। बिहार में विधानसभा (Bihar Polls 2020) हो रहे हैं। इस बार राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर 7.2 करोड़ से ज्यादा वोटर मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 2015 में 6.7 करोड़ मतदाता थे। कोरोना महामारी (Covid-19) के बीचे चुनाव कराए जा रहे हैं। इस वजह से इस बार 7 लाख हैंडसैनिटाइजर, 46 लाख मास्क, 6 लाख PPE किट्स और फेस शील्ड, 23 लाख जोड़े ग्लब्स इस्तेमाल होंगे। यह सबकुछ मतदाताओं और मतदानकर्मियों की सुरक्षा के मद्देनजर किया जा रहा है। ताकि कोरोना के खौफ में भी लोग बिना भय के मताधिकार की शक्ति का प्रयोग कर सकें। बिहार चुनाव समेत लोकतंत्र की हर प्रक्रिया में हर एक वोट की कीमत है।

2015 के चुनाव में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने लालू यादव (Lalu Yadav) की आरजेडी (RJD) और कांग्रेस (Congress) के साथ महागठबंधन (Mahagathbandhan) बनाया था। महागठबंधन ने राज्य की सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। नतीजों में रिकॉर्ड बहुमत भी हासिल किया था। लेकिन राज्य की एक सीट ऐसी भी थी जहां नीतीश-लालू की जोड़ी का कोई जादू नहीं चला। ये सीट थी बनमनखी। 

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रिजर्व सीट पर हुई थी कांटे की लड़ाई 
बनमनखी सीट (Banmankhi Assembly) पूर्णिया जिले में है। यह पूर्णिया लोकसभा का भी हिस्सा है। ये सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। महागठबंधन में बनमनखी सीट आरजेडी के खाते में थी। आरजेडी ने संजीव कुमार पासवान को प्रत्याशी बनाया था। जबकि बीजेपी की ओर से कृष्ण कुमार ऋषि मैदान में थे। हालांकि निर्दलीय समेत यहां और भी दलों के उम्मीदवार थे मगर बीजेपी और आरजेडी उम्मीदवारों के बीच सीधी लड़ाई थी।  

 

90 से पहले कांग्रेस का दबदबा
1977 को छोड़ दें तो 1962 से 1985 तक यहां कांग्रेस का ही दबदबा रहा। 1962 में यहां पहली बार चुनाव हुए थे। मंदिर आंदोलन के दौरान बीजेपी ने पहली बार यहां 1990 में जीत हासिल की थी। तब 2020 में सिर्फ एक बार 1995 में बीजेपी ये सीट जनता दल से हारी थी। 2015 में नीतीश और लालू के गठबंधन से जरूर यह लगा था की शायद बीजेपी अपने इस गढ़ को बचा न पाए। 2015 में यहां कांटे की लड़ाई दिखी। एक-एक वोट के लिए दोनों दलों ने ज़ोर लगा दिया था। 

708 वोटों से सीट बचा ले गई बीजेपी 
मतगणना में भी वोटों की अहमियत समझ में आ रही थी। दोनों उम्मीदवार काउंटिंग में ज्यादा देर तक लीड मेंटेन नहीं कर पा रहे थे। तीसरे नंबर पर निर्दलीय उम्मीदवार जय किशोर थे जो पहले राउंड की काउंटिंग में ही सीन से बाहर हो गए थे। आखिरकार नतीजे बीजेपी के पक्ष में आए। कृष्ण कुमार ने सिर्फ 708 वोटों से बीजेपी की सीट किसी तरह बचा ली। आरजेडी उम्मीदवार जीत के नजदीक आया जरूर लेकिन महज कुछ वोटों से उन्हें निराशा हाथ लगी। 

कृष्णकुमार को 59053  वोट जबकि संजीव कुमार 58,345 वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर जय किशोर को 7458 वोट मिले थे। 2015 में बनमनखी के नतीजे किसी प्रत्याशी और दल के लिए एक-एक वोट की अहमियत समझाने के लिए काफी हैं। अगर आरजेडी उम्मीदवार को कुछ सौ और वोट मिल जाते तो शायद बीजेपी का गढ़ ध्वस्त हो जाता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 

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