डेमोक्रेटिक सिस्टम में सरकार को कंट्रोल करने की शक्ति जनता के हाथ में होती है। जनता को यह शक्ति वोट के रूप में मिली है। लेकिन कई बार कुछ लोग सोचते हैं कि उनके अकेले वोट नहीं देने से क्या फर्क पड़ जाएगा?
नई दिल्ली। बिहार में विधानसभा चुनाव के साथ ही कुछ राज्यों में उपचुनाव होने वाले हैं। चुनाव की प्रक्रिया लोकतांत्रिक देशों में एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसके जरिए मतदाता उम्मीदों पर खरा न उतरने वाले दलों, प्रतिनिधि और सरकारों को हराने या जिताने का अधिकार रखते हैं। मतदान की ताकत के जरिए ही अपनी पसंद की सरकार चुन सकते हैं। जो आगे चलकर सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसे कॉमन मुद्दों पर काम करती है। डेमोक्रेटिक सिस्टम में सरकार को कंट्रोल करने की शक्ति जनता के हाथ में होती है। जनता को यह शक्ति वोट के रूप में मिली है। लेकिन कई बार कुछ लोग सोचते हैं कि उनके अकेले वोट नहीं देने से क्या फर्क पड़ जाएगा? एक वोट से भी बहुत फर्क पड़ता है। लोकतंत्र में हर "एक वोट" की कीमत है।
इसे राजस्थान में सीपी जोशी की हार से भी समझा जा सकता है। हैरान जरूर होंगे मगर एक वोट से जोशी की राजनीतिक किस्मत पलट गई। सीपी जोशी की गिनती राजस्थान कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में की जाती है। एक समय वो कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में सबसे आगे नजर आ रहे थे। समर्थकों को भी उम्मीद थी कि राजस्थान में जोशी जी मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हो जाएंगे। पर 2008 के चुनाव में सिर्फ एक वोट की वजह से उनका दावा कमजोर हो गया।
अहमियत सीपी जोशी से अच्छा भला कौन बता सकता है?
2008 में चुनाव और गिनती तक जोशी मुख्यमंत्री की रेस में शामिल थे, मगर गिनती के बाद ऐसे पिछड़े कि सबकुछ पीछे छूट गया। दरअसल, वो विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक वोट से बीजेपी उम्मीदवार से हार गए थे। तब सीपी जोशी को 62,215 वोट मिले थे। बीजेपी उम्मीदवार कल्याण सिंह चौहान ने 62,216 वोट हासिल किए। जोशी और उनके समर्थकों की उम्मीद खत्म हो गई। चुनाव बाद कांग्रेस की जो सरकार बनी उसमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत थे। उस हार से जोशी के राजनीतिक कद को जबरदस्त धक्का पहुंचा।
समय के साथ खत्म हो गई दावेदारी
धीरे-धीरे राजनीति में उनकी साख पहले से कमजोर होती गई और अब अशोक गहलोत और सचिन पायलट जैसे नेताओं की मौजूदगी में 70 साल के जोशी को कांग्रेस के मुख्यमंत्री की रेस में देखना जागती आंखों से सपना देखने जैसा है। हालांकि उनकी गिनती अब भी पार्टी के सीनियर नेताओं में है। वो फिलहाल राजस्थान विधानसभा के स्पीकर भी हैं। लेकिन जोशी को बीजेपी उम्मीदवार से एक वोट ज्यादा मिला होता तो वो विधायक बनते और ये काफी हद तक संभव था कि कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री के लिए दावेदारी भी करते। मुख्यमंत्री भी बन सकते थे।
लेकिन एक वोट से हार के बाद पिछले 12 साल में राजस्थान कांग्रेस की राजनीति ऐसी बदली कि अब जोशी किसी भी तरह से मुख्यमंत्री की रेस में नजर नहीं आते। हालांकि अनिश्चित मानी जाने वाली राजनीति में कब क्या हो जाए यह दावा नहीं किया जा सकता है। लेकिन एक बात तो साफ है कि मतदाताओं का एक वोट भी बेशकीमती है।