एक वोट की कीमत: सिर्फ कुछ वोटों से 'गढ़' भी गंवा बैठती हैं पार्टियां, बिहार की ये सीट है सबूत

लोकतंत्र की हर प्रक्रिया में हर एक वोट की कीमत है। ऐसे दर्जनों मौके आए हैं जब एक-एक वोट के लिए जंग हुई है और नेताओं को वोटों की कीमत का ज्ञान हुआ है।

Asianet News Hindi | Published : Oct 19, 2020 1:48 PM IST

नई दिल्ली/पटना। बिहार में विधानसभा (Bihar Polls 2020) हो रहे हैं। इस बार राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर 7.2 करोड़ से ज्यादा वोटर मताधिकार का प्रयोग करेंगे। 2015 में 6.7 करोड़ मतदाता थे। कोरोना महामारी (Covid-19) के बीचे चुनाव कराए जा रहे हैं। इस वजह से इस बार 7 लाख हैंडसैनिटाइजर, 46 लाख मास्क, 6 लाख PPE किट्स और फेस शील्ड, 23 लाख जोड़े ग्लब्स इस्तेमाल होंगे। यह सबकुछ मतदाताओं और मतदानकर्मियों की सुरक्षा के मद्देनजर किया जा रहा है। ताकि कोरोना के खौफ में भी लोग बिना भय के मताधिकार की शक्ति का प्रयोग कर सकें। बिहार चुनाव समेत लोकतंत्र की हर प्रक्रिया में हर एक वोट की कीमत है।

चुनावी प्रक्रिया में ऐसे दर्जनों मौके आए हैं जब एक-एक वोट के लिए जंग हुई है और नेताओं को वोटों की कीमत का ज्ञान हुआ है। 2015 में बिहार की करीब आधा दर्जन से ज्यादा सीटों पर एक हजार से भी कम मतों से हार-जीत का फैसला हुआ था। यानी सिर्फ एक बूथ और एक गांव के लोगों के वोट से पूरी विधानसभा का चुनावी गणित बदल गया। कुछ लोगों के वोट से किसी भी प्रत्याशी और पार्टी की किस्मत बदली जा सकती है। 2015 में बरौली विधानसभा सीट के नतीजे कुछ ऐसे ही थे। 

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कई बार आमना-सामना कर चुके थे दोनों प्रत्याशी 
बरौली सीट बिहार के गोपालगंज जिले में आती है। 2015 में ये सीट महागठबंधन में आरजेडी के हिस्से आई थी। मोहम्मद नेमतुल्लाह (Md. Nematullah) को मैदान में उतारा था। जनता दल उम्मीदवार के रूप में नेमतुल्लाह इस सीट का प्रतिनिधित्व 1995 में कर चुके थे। 2015 में उनके सामने एनडीए में बीजेपी के टिकट पर सिटिंग एमएलए रामप्रवेश राय (Ram Pravesh Rai) को प्रत्याशी बनाया था। नेमतुल्लाह और राय इस सीट पर कई मर्तबा एक-दूसरे का आमना-समाना कर चुके थे। राय साल 2000 से लगातार ये सीट जीतते आ रहे थे। उनकी सिलसिलेवार जीत से ये सीट बीजेपी का गढ़ बन गई थी।

आखिरी राउंड तक हुई कांटे की टक्कर 
हालांकि 2015 का चुनाव काफी मुश्किल साबित हुआ। जेडीयू के आ जाने से यहां महागठबंधन प्रत्याशी काफी मजबूत नजर आने लगा। हालांकि राय के जरिए बीजेपी किसी ही हालत में इस सीट पर हार मानने को तैयार नहीं थी। बीजेपी की कोशिशों का असर भी दिखा। मतगणना में राय और नेमतुल्लाह के बीच कांटे की टक्कर दिख रही थी। मामला इतना नजदीकी था कि आखिरी राउंड में बिल्कुल आखिरी मौके पर नतीजे साफ हुए। 

15 साल बाद लिया हार का बदला 
नेमतुल्लाह ने 15 साल बाद राय को दूसरी बार हराकर अपनी पिछली कई पराजयों का हिसाब लिया। बीजेपी सिर्फ 504 मत कम पाने से गढ़ गंवा बैठी। आरजेडी के नेमतुल्लाह ने 61,690 वोट, जबकि रामप्रवेश राय को 61,186 वोट हासिल हुए। बिहार की इस सीट के नतीजे बताते हैं कि चुनाव में कैसे हर एक वोट जरूरी है। जाते-जाते यह भी जान लीजिए कि 2015 के चुनाव में महागठबंधन में आरजेडी-कांग्रेस के साथ जेडीयू भी आ गई थी। इस बार फिर से जेडीयू, बीजेपी के साथ एनडीए का हिस्सा है। 

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